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जैन-गौरव स्मृतियाँ
हूँ
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नौवीं से ग्यारहवीं शताब्दी के बीच की प्रतीत होती है। . अध पदमासनस्थ धातु की जिनमूर्ति :---
अर्धपद्मासनस्थ जैनभूर्ति अतिविरल देखी जाती हैं। प्रायः बुद्ध की मूर्ति अर्धपद्मासनस्थ होती है । परन्तु यह मूर्ति अर्धपद्मासनस्थ होते हुए भी जिनदेव की है । यह मूर्ति बाबू पूर्णचन्द्र जी नाहर को उदयपुर के पास सवी का खेड़ा ग्राम से प्राप्त हुई थी। यह उनके पास कलकत्ता में है । यह पीतल की मूर्ति है और कर्णाटकी लिपि में इस पर लेख लिखा हुआ है जिसे पं० गौरीशंकर ओझा और डॉ० हीरानन्द शास्त्री ने पढ़ा है। बैठक के नीचे नवग्रह की छोटी २ आकृतियाँ हैं । ओझाजी के मतानुसार यह आठवीं सदी की। प्रतिमा होनी चाहिए। वीर सं० ८४ का शिलालेख :---
सुप्रसिद्ध पुरातत्त्ववेत्ता गौरीशंकर हीराचन्द ओझा को अजमेर जिले के वार्ली नामक गाँव से वीर सं० २४ का शिलालेख प्राप्त हुआ है जो अभी अजमेर के म्युजियम में सुरक्षित है।
मथुरा से प्राप्त आयागपट्ट और जैनयति कण्ह (?) कीमूर्ति आदि अनेक प्रकार की प्राचीन सामग्री आजकल के अन्पेपण से प्राप्त हो रही है। यदि विद्वानों का इस दिशा में परिश्रम चालू रहा तो सन्भव है कि अनेक महत्वपूर्ण तत्त्वों पर प्रकाश डोलने वाली प्रचुर सामग्री जैनम्मारकों की सहायता से प्राप्त हो । जैनसाहित्य और जैनस्मारकों का निप्पन बुद्धि से अन्वेषण और अनुशीलन अपेक्षित है। पुरातत्वरसिकविद्वान इस ओर ध्यान दें तो बौद्ध साधन-सामग्री की तरह जनसाधन-सामग्री भारतीय संस्कृति और इतिहास के लिए कामधेनु की तरह हितावह सिद्ध होगी।
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शीत्र मंगाइये (दिवाली की मिठाई) सुन्दर कहानियाँ भाग १ - सुन्दर कहानियाँ भाग २ ऊंट की गरदन . सरस कहानियाँ .
पता-वीरपुत्र कार्यालय, अजमेर
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