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जैन गौरवस्मृतियां
गुफाएँ आदि २ कीर्तिस्तम्भ
भ दिगम्बर सादहवीं सदी
(१०) राजगृह- यहाँ के पंच पहाड़ों में दो बड़ी २ जैन गुफाएँ हैं जिसमें एक का नाम सप्तफरणा और दूसरी का नाम सोनभद्रा है । इन गुफाओं के लिए कनिंग होम ने विस्तृत लेख लिखा है। इन गुफाओं में से मिले हुए शिलालेख से मालूम होता है कि यह ईसा की दूसरी सदी में मुनि वीर-देव के लिए बनवाई गई थी।
नासिक के आसपास की गुफाएं मांगीतुंगी, सतारा जिले की गुफाएँ आदि २ हजारों जैनगुफाएँ बनी हुई है।
चित्तौड़ का कीर्तिस्तम्भ---सुप्रसिद्ध अोझाजी का कथन है कि यह सात मंजिल का उन्नत जैनकीर्तिस्तम्भ दिगम्बर सम्प्रदाय के वघेर वाला महाजन साहनाय के पुत्र जी जीया ने विक्रम की चौदहवीं सदी के उत्तरार्ध में बनाया था। यह कीर्तिस्तम्भ आदिनाथ भगवान का स्मारक है । इसके चारों तरफ अनेक जैनमूर्ति आलेखित है।
पहाड़पुर-कलकत्ता कुचविहार लाइन में जमालगंज स्टेशन है। वहाँ से दो मील दूर टीले पर यह ग्राम है यह सारा टीला जैन स्मारकों से भरा हुआ है । यहाँ से विशाल जिनमन्दिर के अवशेष प्राप्त हुए हैं।
अहिच्छत्रा--ई० आई० आर० के एग्रोनला स्टेशन के ४ कोस पर रामनगर है जिसका प्राचीन नाम शंखपुरी या अहिच्छत्रा है । यहाँ का जैन स्तूप मथुरा के स्तूप से भी प्राचीन है ।
श्री आदिनाथ की धातु प्रतिमाः--यह प्राचीन मूर्ति भारत के वायन्य प्रान्त से बाबू पूर्णचन्द्र जी नाहर को प्राप्त हुई है । यह मूर्ति पद्मासन लगा कर बैठी हुई है और आसपास की मूर्तियाँ कायोत्सर्ग के रूप में खड़ी है । सिंहासन के नीचे नवग्रहों के चित्र और वृपभयुगल है । इससे मूर्ति बड़ी सुन्दर और मनोज्ञ होगई है। इस मूर्ति के पीछे इस प्रकार लेख है "पज्जकसुत आम्बदेवेन । सं० १०७७" इससे यह उक्त संवत् की प्रतीत होती है।
. . . सिरपुर की महत्त्वपूर्ण धातु प्रतिमा :--- . . . . .
कला की दृष्टि से अपना विशिष्ट स्थान रखती है । इसकी रचना शैली स्वतन्त्र, स्वच्छ और उत्कृष्ट कलाभिव्यक्ति की परिचायक है। मूलप्रतिमा पद्मासन लगाये हुए है। निन्नभाग में वृपभचिह स्पष्ट है। केशराशि स्कन्धप्रदेश पर प्रसारित है दाहिनी ओर अम्बिका की मृत्ति है। अनुमानतः यह