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Seyisyi-ysyijayyजैन-गौरव-स्मृतियाँ yyeysajiyati
अन्य जातियों और समाजों से संख्या की अपेक्षा बहुत कम होते हुए भी है, यह समाज समृद्धि में सबसे अधिक बढ़ीचढ़ी है कर्नल जेम्सटॉड ने आनाल्स ऑफ राजस्थान में लिखा है कि and that more than half the mer cantile wealth of India pass throuzh the hanl.s of Jain Lialy.
• इसी तरह कलकत्ता में लार्ड कर्जन ने जैनों द्वारा किये गये स्वागत समारोह के उत्तर में कहा था :- . ..
I am aware of the high idlcas ambo-lied in your religion, of the scrupulous conception of humanity which you antertain, of your great, mercantile infiuence and activity.
यह विपुलसम्पत्ति राज्य या सत्ता के बलपर या अनैतिक.साधनों के बलपर एकत्रित नहीं की गई है अपितु व्यापारिक प्रतिभा, दूरदर्शिता, साहस, धैर्य आदि सद्गुणों के द्वारा उपार्जित की गई है । "प्राचीन काल की यातायात के महान कठिनाइयों की परवाह न करके नैनव्यापारी घर से लोटा-डोर लेकर निकलते थे और धर कूच घर मुकाम करते हुए महीनों में चंगाल, आसाम, मद्रास आदि अपरिचित देशों में पहुँचते थे। भापा और सभ्यता से अपरिचित होने पर भी ये लोग धैर्य और साहस का अवलम्बन लेकर अपना कार्य करते रहे और अन्ततः हिन्दुस्तान के एक छोर से दूसरे छोर तक सब छोटे-बड़े व्यापारिक केन्द्रों में अपने पैर मजबूती से रख दिये। भारत का प्रसिद्ध 'जगत सेठ' का कुटुम्ब इसका भव्य उदाहरण है । कहाँ नागौर और कहां बंगाल ? कहां तत्कालीन बंगाल की परिस्थिति और कहां लोटा-डोर लेकर निकलने वाला हीरानन्द ? क्या कोई कल्पना कर सकता था कि इसी हीरान्द के वंशज के इतिहास में जगत् सेठ के नाम से प्रसिद्ध होंगे? तया यहां के राजनै.तेक, धार्मिक और सामाजिक वातावरण पर अपना एकाधिपत्य कायम कर लेंगे ? सच बात तो यह है कि प्रतिभा के लगाम नहीं होती, जब इसका विकास होता है तब सर्वतोमुखी होता है ! इसी हीरानन्द के वंशजों के घर में एक समय ऐसा आया जब चालीस करोड़ का व्यापार होता था। सारे भारत में यह प्रथम श्रेणी का धनिक घराना था। लार्ड स्लाइव ने अपने पर लगाये गये श्रारापों का प्रतिकार करते हुए लन्दन में