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SISeeजैन-गौरवनमृत्तियाँ
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सथा कोसमखिराज गाँव है। पास में जंगल में पर्वत पर पद्मप्रभु के कल्याणक का तीर्थ हैं । पहले यहां पद्मप्रभु का मन्दिर था । अभी विच्छेद तीर्थ है। भदिलपुरः
गया जंकशन से १२ मील हटवारिया ग्राम है, उसके पास कोलवां पहाड़ पर शीतलनाथ भगवान् के ४ कल्याणकों का तीर्थ है । यह भी विच्छेद तीर्थ है। मिथिला :
यह मल्लिनाथ भगवान् तथा नमिनाथ भगवान् के आठ कल्याणक का तीर्थ है। यहाँ मन्दिर था जो अब जैनेतरों के अधिकार में है । पादुकाएं. भागलपुर मंदिर में लेजाई गई हैं।
मगधसम्राट् श्रेणिक के पौत्र उदाई ने यह नगर बसाया था। प्राचीन काल में यहाँ विशाल जैनपुरी थी। उदाई से लेकर सम्राट् सम्प्रति तक यह मुख्य राजधानी रही है । यहाँ सुदर्शन सेठ की प्रसिद्ध पादुका तथा स्थूलिभद्र की पादुकाएँ हैं । चौक बाजार में दो जिनालय है। पावापुरी:
यह भगवान् महावीर की निर्वाण भूमि होने से परमपावन तीर्थभूमि हैं । भगवान् महावीर ने सर्वप्रथम देशना भी यहीं प्रदान की थी और अन्तिम देशना भी यहीं दी थी । प्रभुमहावीर के सत्य और अहिंसा का दिव्य संदेश मानवजाति को सर्वप्रथम यहीं प्राप्त हुआ था। भगवान का निर्वाण हो जाने पर जहां उनका दाह संस्कार किया गया वहां उनके भ्राता राजा नन्दिवर्धन ने सुन्दर सरोवर बनवाकर उसके बीच में मनोहर जिनमन्दिर बँधवाया, ऐसा कहा जाता है यह जलमंदिर के नाम से प्रसिद्ध है। मंदिर में जाने के लिए पत्थर की पाल बँधी हुई है । यह परम शांति का धाम है । इस जलमंदिर का दृश्य बड़ा सुहावना है। स्व० महामना मालवीय जी ने इस जलमंदिर का दर्शन करते हुए कहा था कि "यह मंदिर . प्रात्मा की अपूर्व शांति का धान है।"
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