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* जैन-गौरव-स्मृतियाँ
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. . ग्राम मंदिर में भगवान् महावीर की प्राचीन सुन्दर मूर्ति विराजमान है। आसपास ऋषभदेव, चंद्रप्रभ, सुविधानाथ और नेमिनाथ भगवान् की . मूर्तियां हैं। यहां भगवान् की अतिप्राचीन पादुकाएँ हैं। यहां देवर्धिगणि... क्षमाश्रमण की मनोहर मूर्ति भी है । ग्राम मंदिर से थोड़ी दूर पर एक खेत । में स्तूप है । पहले यहां समवसरण मंदिर था ऐसा अनुमान किया जाता है। प्रभु की क्रांतिम देशना यहीं हुई होगी।
राजगृह-यह नगर बहुत प्राचीन है। वीसवें तीर्थङ्कर श्री मुनिसुव्रत. स्वामी के च्यवन, जन्म, दीक्षा और केवल कल्याणक यहीं हुए हैं। तीन . . हजार वर्ष पहले का इसका इतिहास जैनग्रन्थों में उपलब्ध होता है । राजा प्रसेनजित और श्रेणिक की राजधानी यही नगर था । भगवान् महावीर यहां अनेकों बार पधारे । राजगृही के नालंदा पाड़ा (मुहल्ला ) में भगवान् ने चवदह चातुर्मास किये थे। यहां के गुणशील उद्यान में भगवान की कई . धर्म-देशनायें हुई हैं। भगवान के ग्यारह गणधर यहीं पहाड़ों पर निर्वाण प्राप्त हुए हैं। जैनों के लिए यह स्थान अत्यन्त महत्त्व का है। यहां दो जिनमंदिर है। यहां से विपुलगिरि और वैभारगिरि की यात्रा की जाती है। ये पाँचों पहाड़ गोलाकृति में हैं। (१) विपुलाचल--यहां गर्म पानी के पांच कुण्ड है। यहां छोटी २ देवकृलिकायें है। एक में अतिमुक्तक कुमार की पादुका है । एक में वीरप्रभु के चरण है। उत्तराभिमुख मुनिसुव्रत स्वामी . का मंदिर, चंद्रप्रभ म्वामी का मंदिर समवसरण की रचना वाला वीरप्रभु और ऋषभदेवजी के मंदिर हैं । (२) रत्नगिरि-यहां उत्तराभिमुख शांतिनाथजी का मंदिर है। वीच के स्तूप के गोखडों में शांतिनाथ, पार्श्व-... नाथ, वासुपूज्य तथा नेमिनाथ भगवान के चरण है। (२) उदयगिरि- . पूर्वाभिमुख किले में पश्चिमामिमुख मंदिर है जिसमें मूलनायक सांवलिया पार्श्वनाथ की मूर्ति है। दाईं ओर पार्श्वनाथ तथा बाई ओर मुनिसुव्रतस्वामी की पादुकायें है। पास में देवकुलिकायें हैं जिनमें चरण पादुकायें है । (४) स्वर्णागिरि- यहाँ पूर्वाभिमुख ऋषभदेवजी का मंदिर है।
(५) वैभारगिरि-इसकी ५ टुक है। प्रथम दुक पर पूर्वाभिमुख .. मन्दिर में जिनमूर्ति है । दोनों तरफ नेमिनाथ और शान्तिनाथ भगवान की