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जैन-गौरव-स्मृतियाँ
उत्तर-पूर्व प्रदेश के जैनतीर्थ
बनारस:
यह देवाधिदेव सप्तम तीर्थङ्कर श्री सुपार्श्वनाथ भगवान् और तेवीसवें तीर्थकर श्री पार्श्वनाथ जी के चार-चार कल्याणकों की पवित्र भूमि होने से परम तीर्थरूप है । यहाँ अभी : श्वेताम्बर जिनालय हैं और अनेक दिगम्बर मंदिर भी है। इसके भेलुपुर उपनगर में पार्श्वनाथ के ४ कल्याणक हुए हैं। यहाँ पार्श्वप्रभु का सुन्दर मंदिर है । भदैनी में गंगा के किनारे बच्छराज घाट पर सुन्दर मन्दिर है। यह श्री सुपार्श्वनाथ प्रभु का च्यवन और जन्मस्थान माना जाता है।
सिंहपुरी-बनारस से चार मील दूर सिंहपुरी तीर्थ है । यहां श्री श्रेयांसनाथ प्रभु के च्यवन, जन्म, दीक्षा और केवलज्ञान कल्याणक हुए हैं। इस स्थान पर अभी हीरापुर ग्राम है। यहां से एक मील पर श्वेताम्बर मंदिर है जिसमें श्रेयांसनाथ प्रभु की मूर्ति विराजमान है । इसके सामने ही समवसरण के आकार का एक मन्दिर है जो केवलज्ञान कल्याणक का सूचक है । यहां बौद्धों का प्रसिद्ध सरनाथ स्तूप है।
चन्द्रपुरी-सिंह पुरी से ४ कोस चन्द्रपुरी है जो चंद्रप्रभु के च्यवन, जन्म, दीक्षा और केवल कल्याणक की भूमि है गंगा के किनारे टीले पर जिनमन्दिर है।
अयोध्या:-इसका प्राचीन नाम विनितानगरी है । यह भगवान् ऋपभदेव के च्यवन, जन्म और दीक्षा कल्याणक की भूमि है । अजितनाथ, अभिनन्दन, सुमतिनाथ और अनन्तनाथ तीर्थकर के चार चार कल्याणक की पवित्रभूमि है। आजकल कटरा मोहल्ला में जैनमंदिर है।
केदार:-हिमालय के शिखरों में केदारपार्श्वनाथ, बद्रीपार्श्वनाथ, मानसरोबर विमलनाथ आदि तीर्थ धे परन्तु शंकराचार्य के समय से वेदानुयायियों के अधिकार में है । कहा जाता है कि मृल गादी पर आज भी तीर्थकर की मूर्तियां हैं।