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EX जैग-गौरव-स्मृत्तियाँ Aenel
स्वामी का मन्दिर, कीर्तिस्तम्भ आदि २७ जिनमंदिर हैं। शृंगारचौरी के मंदिर और उसके तलघर में हजारों जिनमूर्तियां हैं। शतवीस देवरी का मंदिर उसकी सुन्दर कोरणी के लिए दर्शनीय है । सात मंजिल की कीर्ति स्तम्भ-जिसके नीचे का घेरा ८० फीट है-जैनधर्स के भव्य उत्कर्ष का प्रतीक है। इस कीर्तिस्तम्भ का निर्माण कराने वाला संववी. कुमारपाल नामक एक पोरवाड़ जैनश्रावक था। गोमुख कुण्ड के पास एक जैनमंदिर है जिसमें सुकोशल मुनिराज और व्याघ्री के उपसर्ग का दृश्य आलेखित है । चित्तौड़ में अनेक प्राचीन जैनस्थापत्य, मूर्तियाँ और खंडहर उपलब्ध होते हैं जिनसे मेवाड़ में जैनधर्म का प्रमुत्व सिद्ध होता है।
मालवा के तीर्थ मांडवगढ़ः---
भारत की प्राचीन नगरियों में माण्डव का उल्लेखनीय स्थान है । इसका - वैभव किसी समय पराकाष्टा पर पहुंचा हुआ था । कहा जाता है कि यहाँ विक्रम और भर्तृहरि की भी सत्ता रही है। मालवपति मुजराज और विद्याविलासी राजा भोज ने इस मांडवगढ़ पर सत्ता जमाने में अपना गौरव माना था। १४५४ में यह मालवा की राजधानी थी। चौदहवीं शताब्दी तक यह उन्नति के शिखर पर था। उस समय यहाँ दानवीर, धर्मवीर श्रीमन्त जैनों ने सैकड़ों जिनमन्दिर वनवाये थे। यहाँ के महामंत्री पेथड़शाह ने मांडवगढ़ के तीनसो जिनमन्दिरों का जर्णोद्धार कराया और स्वर्णकलश चढ़ाये । इन मंत्रीश्वर ने विविध स्थानों पर २४ भव्य जिनमंदिर बंधवाये और अपार द्रव्यराशि यात्रा संघ आदि धर्मकार्यों में लगाई। जांजणकुमार, मण्डन मंत्री, संग्रामसिंह सोनी, धनकुबेर भंसाशाह, जावडशाह, आदि अनेक धनकुवेर, दानवीर, धर्मवीर और सरस्वती पुत्र इस स्थान पर हुए हैं जिनकी कीर्ति जैनसाहित्य में आज तक अमर है।
सोलहवीं सदी के बाद इस का उत्तरोत्तर पतन होता गया और श्राज तो थोड़े से भीलों के झोपड़ों और पुराने भग्नावशेष मात्र रह गये हैं। किसी समय इस किले में तीनलाख जैन थे और सैकड़ों जिनालय थे, आज तो ' छोटा सा गाँवड़ा रह गया है। हन्त ! कितना बड़ा परिवर्तन ! इस समय यहाँ
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