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* जैन-गौरव-स्मृतियाँ *
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है। इस मन्दिर के ध्वज की छाया वारह मील पर पड़ती थी। इस मन्दिर फे पास नवचौकी नाम का स्थान है जिसकी कारीगरी वहुत सुन्दर है। नव- - चौकी में विस्तृत प्रशास्ति का शिलालेख है । नागदा- अदबदजी:___उदयपुर से १४ मील उत्तर में एकलिंगजी के पास पहाड़ों के बीच में यह तीर्थ है । प्राचीनकाल में यह एक बड़ा नगर था जिसका नाम नागरूद (नागदा) था। यह किसी समय मेवाड़ की राजधानी भी रहा था। एक मील के विस्तार में पाये जाने वाले जैनमन्दिरों के अवशेषों से ही यहाँ कितने अधिक मन्दिर थे, यह अनुमान किया जाता है। अभी शान्तिनाथजी का मन्दिर है। उदयपुरः
मेवाड़ की वर्तमान राजधानी उदयपुर में ३५-३६ जिनमन्दिर है। शीतलनाथ स्वामी का मन्दिर सब से प्राचीन है इसमें मीनाकारी का कार्य । पर्शनीय है। वासुदेव भगवान् का काच का मन्दिर भी रमणीय है। अघाटपुरः
__उदयपुर से शामील दूर अघाटपुर है। यह एक बार मेवाड़ की राजधानी थी । मेवाड़ के महाराणा जैत्रसिंहजी ने जगचन्द्रसूरि को १२८५ में । में इसी नगर में 'तपा' की उपाधि दी थी । अघाट में ४ प्राचीन मन्दिर हैं। इनमें एक राजा सन्प्रति के समय का है। ऋषभदेव भगवान की प्राचीन प्रतिमा है। चित्तौड़गढ़ः
विश्वप्रसिद्ध वीरभूमि चित्तौड़गढ़ एक प्राचीन जैनतीर्थ है। प्रसिद्ध विद्वान् समर्थप्राचार्य हरिभद्र यहीं के निवासी थे । १६३६ में वीसल श्रावक ने प्रतिष्ठा करवाई थी। सं०१४४४ में जिनराजसूरि ने आदिनाथ विम्ब की प्रतिष्ठा की थी। १४८६ में सोमसूरिजी ने पंचतीर्थी की प्रतिष्ठा की थी। महाराणा मोकल जी के समय में उनके मुख्य मंत्री शरणपाल ने अनेक जिनमन्दिर बनवाये थे। आजकल तो बहुत से मन्दिर बडहर हो गये हैं। अभी मुग्ल्य जिनमन्दिर श्रृंगार चैंबरी, शतबीसदेवरी, गोमुत्री वाला जिनमन्दिर, महावीर
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