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________________ * जैन-गौरव-स्मृतियाँ द्धार हुआ । मेवाड़ के दानवीर मंत्री भामाशाह ने केशरियाजी का जीर्णोद्धार सं० १६४३ में कराया । मूल मन्दिर वहुत प्राचीन और भव्य है । महाराणा फतहसिंह जी ने सवालाख रूपये की कीमत की आँगी भगवान को समर्पित की है । श्वेताम्बर और दिगम्बर दोनों परम्पराएँ इस तीर्थ का पूजत करती हैं। भारत के कोने २ से हजारों यात्री इस पवित्र तीर्थ की प्रतिवर्प यात्रा करते हैं । मूर्ति श्याम और चमत्कारी होने से भील लोग भी कालियावावा नाम से भक्तिपूर्वक पूजा करते हैं और केशर चढ़ाते हैं । जैन-जैनेतर सब इस महाप्रभाविक देव की पूजा करते हैं। .. सांवरिया तीर्थः केशरियाजी से पाँच कोस दूर साँवरिया पार्श्वनाथजी की श्याममूर्ति है। यह मन्दिर पहाड़ पर है। देलवाड़ाः एकलिंगजी से ३-४ मील दूर देलवाड़ा नामक गाँव है। यहाँ अनेक प्राचीन जैनमन्दिर थे । यहाँ से अनेक शिलालेख मिले हैं। अभी यहाँ तीन मन्दिर हैं । सं० १९५४ में जीर्णोद्धार के समय १२४ मृर्तियाँ. जमीन सेनिकली थीं। करेड़ा:-. उदयपुर-चित्तौड़ रेल्वे के करेड़ा स्टेशन से आधा मील दूर सफेद पारस पत्थर का पार्श्वनाथ भगवान का विशाल मन्दिर दिखाई देता है। यह मन्दिर बहुत प्राचीन है । बावन जिनालय के पाट ऊपर का लेख १०३६. का है । इसके अतिरिक्त बारहवीं सदी से १६वीं सदी तक के लेख हैं। महामन्त्री पेयकुमार के पुत्र झांझणकुमार ने इस तीर्थ का उद्धार कराया था। समस्त मेवाड़ में ऐसे विशाल और सुन्दर रंगमण्डप वाला दुसरा मन्दिर नहीं है। दयालशाह का मन्दिरः . उदयपुर के महाराणा राजसिंह के मन्त्री दयालशाह. ने अठा.. रहवीं शताब्दी में एक करोड़ रुपये के खर्च से कांकरोली और राजसागर के बीच राजसागर के पास के पहाड़ पर गगनचुम्बी भव्य जिनालय. बंधवाया. है। कहा जाता है कि यह पहले नी मंजिल का था । आज कल दो ही मंजिल
SR No.010499
Book TitleJain Gaurav Smrutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain, Basantilal Nalvaya
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1951
Total Pages775
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size44 MB
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