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________________ जैन-गौरव नतियां शान्तिनाथ जी का मन्दिर है । यहाँ की अनेक मूर्त्तियाँ अन्यत्र मन्दिरों में भी विराजमान हैं । सं० १८५२ में एक भील को एक मूर्त्ति प्राप्त हुई । धार के. महाराजा यशवंतराव पवार और जैनियों के पता चलने पर वे यहाँ आये और हाथी पर प्रतिमा विराजितकर धार ले जाने लगे परन्तु हाथी दरवाजे के बाहर ही नहीं निकला । श्राखिर वहीं एक खाली मन्दिर में प्रतिमाजी विराजित की। बाद में मन्दिर का जीर्णोद्धार कराया और १८६६ में विधिपूर्वक प्रतिष्ठा की । सं० १६६४ में पुनः जीर्णोद्वार करते हुए प्रतिमा निकली जिसकी प्रतिष्ठा उत्साह पूर्वक की गई। अब भी यहाँ कई चमत्कार होते हुए सुने जाते हैं । इतिहास प्रसिद्ध रूपमती के महल भी यहीं हैं । यहाँ : से चार कोस पर तारापुर में भव्य कलापूर्ण मन्दिर है परन्तु अभी मूर्ति से खाली है। लक्ष्मणी तीर्थ : अलीराजपुर स्टेट का यह छोटासा ग्राम किसी समय सुन्दर जैन तीर्थं था । यहाँ खुदाई करते हुए चवदह जैनमूर्त्तियाँ निकली थीं। एक महावीर प्रभु की प्रतिमा सम्प्रति के समय की प्रतीत होती हैं और तीन पर सं० १३१० का लेख है । >>> तानलपुर :-. इसका प्राचीन नाम हुगियापत्तन है । इसके आसपास प्राचीन मन्दिरों के पत्थर निकलते हैं जो सुन्दर कलापूर्ण और भाववादी होते हैं । यहाँ एक भील के खेत से आदिनाथ जी की तथा दूसरी २५ मृत्तियाँ निकल जिनकी जिनमन्दिर बनवाकर सं० १६१६ में प्रतिष्ठा की गई है। तेरहवीं, चौदहवीं पन्द्रव सदी की प्रतिमाएँ, धातु की प्रतिमाएँ यहाँ है । मक्षी पार्श्वनाथ :-- उज्जैन से १२ कोस दूर मक्षी ग्राम है । यहाँ पार्श्वनाथजी का विशाल गगनचुम्बी मन्दिर हैं। मूलनायक पार्श्वनाथजी की श्यामरंग की विशाल प्रतिमा है जो यहाँ के एक नलवर में से निकली थी । जिस समय यह प्रतिमा निकली उस समय हजारों मनुष्य एकत्रित हुए और बाद में लाखों रूपये लगाकर भव्य मन्दिर बनवाया गया है। मूलनायकजी के एक तरफ Konakshi (२) (Ksksksksksks
SR No.010499
Book TitleJain Gaurav Smrutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain, Basantilal Nalvaya
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1951
Total Pages775
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size44 MB
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