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________________ SHI K E* जैन-गौरव-स्मृत्तियाँ जी का मन्दिर है। सं० १५३६ में जैसलमेर के संखलेचा खेताजी और चोपड़ा गौत्र के पांचा दो श्रीमन्तों ने उसकी प्रतिष्ठा कराई थी। इस मन्दिर पर की गई अद्भुत शिल्पकला के काम को देखकर जावा के सुप्रसिद्ध वोरोबोडू नामक स्थान के प्राचीन हिन्दूमन्दिर का स्मरण आता है क्योंकि उक्त मन्दिर के ऊपर का दृश्य और मूर्तियों के अनुपात भी प्रायः इसी प्रकार के हैं। (४) चन्द्रप्रभ स्वामी का मन्दिर-इसे १५०६ में भणसाली गोत्रीय शाहबीदा ने बनवाकर प्रतिष्ठा कराई। इस मन्दिर की एक कोठरी में बहुत सौ धातुओं की पंचतीर्थी ओर मूर्तियों का संग्रह है। (५) श्री शीतलनाथजी का मन्दिर-यह डागा गौत्रीय सेठों का सं० १४७६ में बनवाया हुआ है। (६) श्री ऋषभदेवजी का मन्दिर-चौपड़ा गौत्रीय शाह धन्ना ने बनवार सं० १५३६ में जिनचन्द्रसूरि जी के हाथ से प्रतिष्ठा कराई। इसका दूसरा नाम गणधर वसही भी है। (७) महावीर स्वामी का मन्दिर (८) सुपार्श्वनाथजी का मन्दिर (E) विमलनाथजी का मन्दिर (१०) सेठ थीहरूशाह का मन्दिर और अन्य कतिपय श्रीमानों के बनवाये हुए मन्दिर हैं। जैसलमेर की विशेष प्रसिद्धि यहाँ के विपुल और समृद्ध प्राचीन ग्रन्थ भण्डारों के कारण है। वहाँ के भण्डार में प्राचीन ताडपत्रीय अनेक ग्रन्थों की प्रतियाँ उपलब्ध होती हैं। प्रसिद्ध पुरातत्त्वज्ञ बुल्हर, हर्मन, जेकोबी और प्रो. एस. आर. भण्डारकर आदि यहाँ के विपुल संग्रह को देखकर विस्मित हुए और उन्होंने इसकी सूची और विवरण प्रकट किया है। अभी २ मुनि श्री पुष्यविजयजी म० ने इस भण्डार को अत्यन्त परिश्रम के साथ सुव्यवस्थित किया है। अनेक अप्राप्य समझे जाने वाले ग्रन्थों की प्रतियाँ यहाँ उपलब्ध हुई है। बाबू पूर्णचन्द्रजीनाहर ने यहाँ के मंदिरों की प्रशस्तियों और शिलालेखों पर प्रकाश डालने वाला ग्रन्थें लिखा है। लोद्रवा के जैनमन्दिर: पार्श्वनाथजी का मन्दिर जो कि लोद्रवा फेस के समय नष्ट हो पाश्वमा
SR No.010499
Book TitleJain Gaurav Smrutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain, Basantilal Nalvaya
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1951
Total Pages775
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size44 MB
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