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* जैन-गौरव-स्मृतियाँ.
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गुजरात के जैनतीर्थ श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथः---
वीरमगाँव से राधनपुर जाती हुई मोटर सर्विस के मार्ग में शंखेश्वर. आता है । यह तीर्थ अत्यन्त प्राचीन और चमत्कारिक है। इसका पौराणिक इतिहास कृष्ण और नेमिनाथ से सम्बद्ध है। कहा जाता है कि जब जरासन्ध ने कृ' रण-वासुदेव पर चढ़ाई की तब कृष्ण भी अपनी राज्य-सीमा के किनारे सैन्य लेकर उसका प्रतिरोध करने के लिए गये। वहाँ अरिष्ट नेमिकुमार ने
पञ्चजन्य शंखनाद किया जिससे जरासन्ध का सैन्य क्षुब्ध हो उठा । __जब जरासन्ध ने अपनी कुलदेवी की आराधना की और उसके प्रभाव से
कृष्ण की सेना श्वास और खाँसी से पीड़ित होगई। कृष्ण आकुल-व्याकुल हुए। तब नेमिकुमार ने अवधिज्ञान से जान कर कहा कि पाताललोक में नागदेव पूजित भावी तीर्थङ्कर पार्श्वनाथ की प्रतिमा हैं उसके पूजन से यह उपद्रव दूर होगा । श्री कृष्ण ने अनशन करके नांगराज की आराधना कर वह प्रतिमा प्राप्त की और उसे शंखेश्वर में स्थापित की उसके प्रभाव से वे निरुपद्रव और विजयी हुए। धरणेन्द्र पद्मावती के सान्निध्य से युक्त यह पार्श्व प्रभु की प्रतिमा सकल विघ्नहारी और अति चमत्कारमय मानी जाती है। यह इस तीर्थ का पौराणिक इतिहास है। . . . . . .
.. आजकल भी कतिपय भावुक जनता इस तीर्थ के चमत्कारों की प्रत्यक्ष कहानी श्रद्धा के साथ कहती सुनती हैं । भावुक जनता की चमत्कार मय तीर्थ पर असाधारण श्रद्धा है।
मूलनायक शंखेश्वरजी की मूर्ति पर कोई लेख नहीं है परन्तु वहाँ की देवकुलिाकात्रों में विराजित मूर्तियों पर तेरहवीं-चवदहवीं सदी के लेख मिलते. हैं। इस तीर्थ का ऐतिहासिक उल्लेख बारहवीं शताब्दी से मिलता है। धर्मवीर सज्जन महता, वस्तुपाल-तेजपाल, और राणा दुर्जनशल्य. ने इस तीर्थ. का उद्धार कराया और नवीन मन्दिर वनवाये। औरंगजेब के शासन काल में मूलनायक की प्रतिमा जमीन में सुरक्षित करदी गई थी। औरंगजेब की सेना