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* जैन-गोरव-स्मृतियाँ*:S
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श्री ए० डब्ल्यू रूडोल्फ हार्नल को भेजी। उन्होंने इस तानपन्न की नकल : को बड़ी कठिनाई से पढ़कर निर्णय किया कि "भगवान् महावीर के बाद .. तैबीसवें वर्ष देवचंद्र नाम के वणिक ने पार्श्वनाथ प्रभु का यह मन्दिर बँधवाया है।" ( इस सम्बन्ध में अन्वेपण की आवश्यकता है । )..
- बावन जिनालयों से मण्डित इस मन्दिर की रचना बड़ी अद्भुत है। ४५० फीट लम्वेचौड़े चौक के बीच में यह मन्दिर आया हुआ है । मन्दिर की ऊंचाई ३८ फीट, लम्बाई १५० फीट, चौड़ाई ८० फीट है। मूल मन्दिर . के चारों ओर ५२ देवकुलिकाएँ हैं। चार गुम्बज बड़े और दो छोटे हैं। . मन्दिर का रंगमण्डप विशाल हैं । उसमें २१८ स्तम्भ हैं। दोनों परफ चांदनियां हैं। चांदनी पर से बावन छोटे शिखर और एक विशाल शिखर ऐसे दिखाई पड़ते हैं मानों संगमरमर का पहाड़ उत्कीर्ण किया हुआ हो। प्रवेश द्वार सुन्दर कारीगरी वाला है।"
... यहाँ के कतिपय स्तम्भों पर विविध संवत् लिखे हुए मिलते हैं जो , सम्भवतः उनके जीर्णोद्धार के सूचक है। . . . . . . . .....
ऐसा भी कहा जाता है कि भद्रावती का प्राचीन मन्दिर सम्प्रति राजा ने कराया और उसमें मुख्य नायक पार्श्वनाथ थे। वर्धमानशाह और उनके भाई पद्मसी ने सं० १६८२-८८ के बीच में इसका उद्धार करवाया था। ..
सुथरी:---
यहाँ भव्य जिनालय हैं। शान्तिनाथप्रभु का मन्दिर है। जिसमें पापाण की ११२ प्रतिमा हैं इनके अतिरिक्त घृतकल्लोल पार्श्वनाथ की’ चमकारी मूर्ति का एक मन्दिर है कच्छ देश में इस मूर्ति का बहुत माहात्म्य है। अम्बडासा, कोठारा, जरवी, नलिया और तेरा यह प्रसिद्ध पंचतीर्थी है । अंजार, मुद्रा, मांडवी, भुज, कंधकोट और कटरिया में भव्य जिनालय और मनोहारी प्रतिमाएँ हैं। ..