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________________ Streena जैन-गौरव-स्मृतियाँ जामनगरः--- ... ___काठियावाड़ में जामनगर को जैनपुरी कहा जा सकता है । यहाँ वारह. जिनमन्दिर हैं । इनमें वर्धमानशाह और चौकी का मन्दिर अति ही रमणीय और दर्शनीय है । लालन वंशीय वर्धमान और पद्मसिंह इन बन्धुयुगल ने अद्भुत साहस और पुण्यबल से अपार द्रव्यराशि उपार्जित की और जिनमन्दिरों के निर्माण, जीर्णोद्धार तथा संघयात्राओं में उदारता पूर्वक व्यय की। जामनगर के मन्दिर के निर्माण में ६०० कारीगर लगाये । इसकी कारीगरी और सुन्दरता अति ही रमणीय है । अतः जामनगर तीर्थ न होने पर भी तीर्थ समान-अर्ध शत्रुञ्जय समान माना जाता है। कच्छ के तीर्थ भद्रेश्वर तीर्थः--- .. यह अत्यन्त प्राचीन तीर्थ माना जाता है। आदर्श ब्रह्मचारी विजयसेठ और विजया सेठानी इसी नगरी के निवासी कहे जाते हैं। वर्तमान में माण्डवी बन्दर से १५ कोस, अंजार स्टेशन से १० कोस, भुज स्टेशन से १४ कोस दूर समुद्र के किनारे वसई ग्राम के नजदीक यह प्राचीन भद्रेश्वर है । इसकी रचना आबू के जैनमन्दिरों जैसी है। दानवीर जगडुशाह ने इसका सं० १३११-१५ में जीर्णोद्धार करवाया अतः यह जगडुशाह का मन्दिर कहा जाता है । इसकी रचना बड़ी भव्य है । इस मन्दिर में पहले पार्श्वनाथ भगवान् की प्रतिमा थी जो अब भमती के पीछे की देवकुलिका में विराजित है । अभी मूलनायक के रूप में भ० महावीर की प्रतिमा है । श्री न्यायविजयजी म. ने इस तीर्थ के सम्बन्ध में लिखा है कि"श्री वीर निर्वाण पश्चात् २३ वें वर्ष में देवचन्द्र नामक एक धनाढ्य सेठ ने इस नगरी के मध्यभाग में भव्य जिनमन्दिर वनवाया और प्रतिमा की अंजन शलाका श्री सुधर्मास्वामी गणधर ने कराई । इस सम्बन्धी एक ताम्रपत्र वि० सं० १६३६ में यहाँ के मन्दिर का जीर्णोद्वार के समय प्राप्त हुआ ! इस लेख की मूलप्रति भुज में हैं किन्तु उसकी नकल आचार्य श्री विजयानन्दसरिजी ! म को तथा रोयल एशियाटिक सोसाइटी कलकत्ता के ऑनररी सेक्रेटरी
SR No.010499
Book TitleJain Gaurav Smrutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain, Basantilal Nalvaya
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1951
Total Pages775
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size44 MB
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