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* जैन-गौरव-स्मृतियाँ *
जो वस्तुपाल-तेजपाल की ढुक के नाम से विख्यात हैं। इसमें वस्तुपाल तेजपाल सम्बन्धी कई शिलालेख हैं। सम्प्रतिराजा. ने. गिरनार पर सुन्दर जिनमदिर बनवाया जो अतिभव्य और कलापूर्ण हैं।
. गिरनार पर राजमती की गुफा, सहस्राभुवन आदि कतिपय दर्शनीय स्थान हैं । गिरनार पर चढ़ने का मार्ग पहले अत्यन्त कठिन था। कुमारपाल सिद्धाचल के दर्शन के लिए जाते हुए गिरनार की यात्रा के लिए भी आया था किन्तु चढ़ने की कठिनता के कारण ऊपर न जा सका। इससे उसे बड़ा दुःख हुआ। उसने मंत्री आम्रदेव. को सीढ़ियाँ बनवाने का भार सौंपा। आम्रदेव ने सौराष्ट्र के सूबेदार पद पर रहते हुए वि. स. १२२२ में गिरनार पर पाज बनवाई। यह महान् भागीरथ कार्य करके अाम्रदेव ने श्रद्धालु यात्रियों के लिए बड़ी अनुकूलता करदी 1 जूनागढ़ के डॉ. त्रिभुवनदास मोतीचंद के सुप्रयत्न से गिरनार पर सुन्दर सीढियाँ बन गई हैं । करीव ४००० से अधिक सीढियाँ हैं । दिगम्बर जैनमन्दिर भी यहाँ वन गया है। तहलटी की सड़क पर अशोक शिलालेख भी है गिरनार पर्वत पर बने हुए भव्य जिनमंदिर स्थापत्य के उज्ज्वल आदर्श हैं।
अजारा (पार्श्वनाथ):--
इसका प्राचीन नाम अजयनगर था । अभी यह छोटासा ग्राम है परन्तु पहले यह अतिसमृद्ध था । कहा जाता है कि दशरथ के पिता अज ने इसे बसाया था। यहाँ के जिनमन्दिर में भगवान पार्श्वनाथ की मूर्ति विराजमान है । इस मूर्ति का इतिहास अति प्राचीन है। ऐसा माना जाता है कि यह महाप्रभाविक प्रतिमा ६ लाख वर्ष तक धरणेन्द्र द्वारा पूजित रही, इसके बाद छह सौ वर्ष तक कुवेर ने पृजन किया । तत्पश्चात् वरुण ने सातलाख वर्प तक पूजन किया । अजयपाल (अज) राजा के समय यह प्रतिमा यहाँ प्रकट हुई। इसके प्रभाव से अजयपाल के सब रोग मिटगये और उसने मन्दिर निर्माण करवाकर प्रतिमा की प्रतिष्टा की।
अजारा ग्राम के आसपास अनेक मृत्तियाँ निकलती है। इससे मालूम होता है कि पहले यहाँ अनेक मन्दिर थे, अजारा पार्श्वनाथ के मन्दिर fiyaayay(१७३) eyeyeyeyesyay