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>> जैन- गौरव स्मृतियां <<
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रंगमंडप ४२|| फीट लम्बा है। गर्भगृह के आस पास की भ्रमती में तीर्थङ्कर, यक्ष, यक्षिणी, सम्मेतशिखर, नन्दीवर, द्वीप आदि की कुल १७५ मूत्तियाँ हूँ | रंगमंडप के पूर्व की ओर स्तम्भ के नीचे एक लेख है जिसमें "संवत् १११३ वर्ष जेठमा १४ : दिने श्रीमन्न मीश्वरजिनालयः कारितः " लिखा हुआ है ।
इस नेमिनाथ जी के देवालय का जीर्णोद्वार वि० सं० ६०६ में काश्मीर निवासी श्रावक रत्नाशाह ने कराया था। संवत् १२१५ में भी इसका जीर्णोद्धार किया ऐसा एक लेख टॉडसाहब को मिला है। इसके पूर्व सिद्धराज जयसिंह ने जिस सज्जन मंत्रीको सौराष्ट्रका सुवेदार नियुक्त किया था उसने तीनवर्ष की सारठ की आमदनी से इस तीर्थ का भव्य उद्धार किया था। और फिर सिद्धराज से बड़ी कुशलता से स्वीकृति ले ली थी । गिरिशिखर पर सज्जन मंत्री द्वारा निर्मापित कलाकृतियाँ देखकर सिद्धराज बहुत प्रसन्न हुआ था ! सज्जन को भीमकुंडलिक श्रावक ने बहुत सहायता पहुँचाई थी । उसने भीमकुंड बनवाया और अठारह रत्नों का हार प्रभु के समर्पित किया था ।
मानसिंह भोजराज की टुक पर इस समय एक ही मंदिर है । उसमें संभवनाथजी सृजनायक के रूप में विराजमान है। कच्छमांडवी के ओसवाल सेठ मानसँग भोजराज ने इस मंदिर का उद्धार करवाया और सूर्यकुंड बनवाया अतः यह बँक उनके नाम से प्रसिद्ध है ।
संग्राम सोनीजी की टुकः
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संग्रामसोनी पन्द्रहवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में हुए हैं। वीरवंशावली में लिखा है कि ये गुजरात के चडीयार विभाग में लोला ग्राम के पोवाड थे । इन्होंने तपागच्छ के आचार्य श्री सोमसुन्दरजी के पास से भगवती सूत्रका श्रवण करते हुए जहाँ २ 'गोवसा' पढ़ याया वह वहाँ सोना मोहर अपनी तरफ से, माता की तरफ से तथा स्त्री की तरफ से रखकर कुल ६३ हजार स्वर्णमुद्रा ज्ञान खाते में दान की थी। इन्हीं संग्राम सोनी ने गिरनार पर यह टुक बँधवाई। इस टुक में रंगमण्डप दर्शनीय हैं। मूलनायक पार्श्वनाथजी हैं । कुमारपाल की टँक, कुमारपाल राजा ने चनवाई | इसी तरह वस्तुपाल- तेजपाल ने अनेक भव्य जिनमन्दिर बनवाये.
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