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________________ StreiSite * जैन-गौरव-स्मृतियाँ eSist adm nist ratistkhaki 'Tempes' के नाम से यह विश्वविख्यात नगर है। गिरिराज का वर्णन करते हुए एक विद्वान् ने लिखा है :-- :..: पर्वत की चोटी के किसी भी स्थान से खड़े होकर आप देखिये हजारों मन्दिरों का बड़ा ही सुन्दर दिव्य और आश्चर्यजनक दृश्य दिखलाई . देता है । इस समय दुनिया में शायद ही ऐसा कोई पर्वत होगा जिस पर इतने सघन, अगणित और बहुमूल्य मन्दिर बनवाये गये हैं। इसे एक मन्दिरों का शहर ही समझना चाहिए। पर्वतों के बहिः प्रदेशों का सुदूरव्यापी दृश्य भी यहाँ से बड़ा ही रमणीय दिखलाई देता है।" .. पालीताना शहर में भी यात्रियों की सुविधा के लिए. जैनों ने अनेक (८०-६०.) विशाल धर्मशालाए वनवाई हैं। यात्रियों को यहाँ सब तरह की सुविधाएँ प्राप्त होती हैं। .. .. आगममन्दिर':- . . __. स्व० श्री सागरानन्दसूरीश्वरजी महाराज की प्रेरणा से शत्रुजय गिररािज की तलहटी में भव्य आगममंन्दिर निर्माण हुआ है। इसमें .. श्वेताम्बर सम्प्रदाय के माननीय पैतालीस आगमों को संगमरमर की शिलाओं पर सुंदर ढंग से उत्कीर्ण कराकर सारे मन्दिर में ये शिलाएँ लगाई गई हैं। इस मंदिर का नाम देवराजशाश्वत जिनप्रासाद श्री वर्धमान जैनागम मंदिर है । इसकी प्रतिष्ठा सं० १६६६ माघ कृष्णा दशमी को हुई। आधुनिक रचनाओं में यह भव्य रचना है। . . . . . ... इस प्रकार शत्रुञ्जय गिरिराज जैनियों का सर्वाधिक पूजनीय तीर्थस्थान है। लाखों यात्री प्रतिवर्ष इस तीर्थ की यात्रा कर अपना जीवन धन्य मानते हैं यह तीर्थ जैनियों के धर्म और कलाप्रियता का तथा उनके भव्यगौरव का उज्ज्वल प्रतीक है। तालध्वजगिरि :- . . . .. .. . . यह तालध्वजगिरि, शत्रुजय का एक शिखररूप है । इस पर तीन जिनमन्दिर है। मूलनायक श्री सुमतिनाथजी हैं । ऊपर चौ मुखजी का
SR No.010499
Book TitleJain Gaurav Smrutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain, Basantilal Nalvaya
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1951
Total Pages775
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size44 MB
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