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* जैन गौरव-स्मृतियाँ
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आत्माओं में पवित्रता का संचार करने के कारण पुनीत और पवित्र माने जाते है। अतः प्रत्येक धर्म में तीर्थस्थानों का अत्यन्त महत्व बताया गया है। मैनतीर्थों में शत्रुञ्जय, गिरिनार, सम्मेतशिखर, माखू आदि २ अत्यन्त प्रसिद्ध हैं। इनमें भी शत्रुन्जय को सबसे अधिक महत्व प्राप्त है। यह सका. तीर्थशिरोमणि गिरिराज सर्वाधिक श्रेष्ठ और पूजनीय माना जाता है। .
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यह तीर्थअति प्राचीन और शाश्वत माना जाता है । इस गिरिराज पर से अनेक आत्माओं ने शाश्वत शान्ति का अनुभव कर निर्वाण प्राप्त किया है। ज्ञाताधर्मकथाङ्ग में पुण्डरीकाचल के नाम से भी इसका उल्लेख किया । है। असंख्य आत्माओं ने यहाँ से सिद्धि प्राप्त की है अतः यह सिद्धाचल के . नाम से भी विख्यात है। श्री धनेश्वर सूरि जी ने 'शत्रुजय महात्म्य' नामक अन्य संस्कृत भाषा में लिखकर इस तीर्थ का महात्म्य सूचित किया है। . .
आदि तीर्थङ्कर श्री ऋषभदेव यहाँ अपनी सर्वज्ञावस्था में कई बार पधारे । प्रथम चक्रवर्ती राजा भरत ने इस गिरिराज पर गगन चुम्बी भव्य ...। जिनालय बँधवाया और उसमें रत्नमय जिनबिम्ब की स्थापना की । ऋषभदेव स्वामी के प्रथम गणधर श्री पुण्डरीक स्वामी ने पञ्चकोटि मुनियों के साथ चैत्र पूर्णिमा के दिन इस गिरिराज पर से निर्वाण प्राप्त किया । नमि, विनामि नामक विद्याधर मुनिपुङ्गव, अनेक चक्रवर्ती आदि राजागण, रामचन्द्रजी, भरत, प्रद्युम्न-शाम्ब आदि यादव कुमार यहाँ से सिद्ध हुए हैं । अनादि काल ... से असंख्य तीर्थकर और मुनि-महात्माओं ने यहाँ से निर्वाण प्राप्त किया है और भविष्य में भी करेंगे। इस कारण से यह गिरिराज सबसे अधिक पूजनीय माना जाता है। .. मुनि श्री न्याय विजय जी (त्रिपुटी) ने अपने तीर्थों के इतिहास में इस तीर्थ के उद्धारों की सूची इस प्रकार दी है:(१) भगवान ऋपभदेव के समय में चक्रवर्ती भरत के द्वारा करवाया गया . उद्वार। (२) भरत राजा के अष्टम वंशज दण्डवीर्य राजा के द्वारा कराया हुमा .
उद्धार। (३। श्री सीमंधर तीर्थदर के उपदेश से ईशानेन्द्र का कराया हुभा उद्धार । । feire eke ke kevekte ($?) ke ke ke ke keleiterte