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________________ * जैन-गौरव-स्मृतियाँ र (४) माहेन्द्र देवेन्द्र का उद्धार । (५) पंचमझन्द्र का कराया हुआ उद्धार । (६) चमरेन्द्र का कराया हुआ उद्धार । (७) अजितनाथ तीर्थकर के समय में सागर चक्रवर्ती का कराया हुआ उद्धार। (८) व्यन्तरेन्द्र का उद्धार । (६) चन्द्रप्रभ तीर्थक्कर के समय में श्री चन्द्रयश। राजा के द्वारा कराया हुआ उद्धार। (१०) श्री शान्ति नाथ प्रभु के पुत्र चक्रायुद्ध नृपति का उद्धार । (११) मुनि सुम्रत स्वामी के शासन काल में श्री रामचन्द्र कृत उद्धार (१२) श्री नेमिनाथ तीर्थकर की विद्यमानता में पाण्डवों के द्वारा किया गया। इसके बाद भगवान महावीर के समय में मगधसम्राट् श्रेणिक ने शत्रुञ्जय गिरीराज पर मंदिर बंधवाये । सम्राट् सम्प्रति ने मन्दिर बनवाये और जीर्णोद्धार किया । राजा विक्रम, शालिवाहन, शिलादित्य भी इसके उद्धारक गिने जाते हैं। विक्रम सं० १०८ में जावड़शाहं ने इसका उद्धार कराया । वि० सं० ४७७ में वल्लभी के राजा शिलादित्य ने धनेश्वरसूरी के उपदेश से शत्रुजय का उद्धार करवाया और बौखों के हाथ में जाते हुए तीर्थ की रक्षा की। सुप्रसिद्ध गुर्जरनरेश सिद्धराज उयसिंह ने इस तीर्थ की यात्राकर बारह ग्राम देवदान में दिये। महाराजा कुमारपाल ने शत्रुञ्जय की यात्रा की थी और उनके मंत्री बाहड ने सं १२१३ में करोड़ों की द्रव्यराशि के व्यय से पुनरुद्धार करवाया। इसके बाद गुर्जरेश्वर वीरधवल के महामात्य वस्तुपाल-तेजपाल - शत्रुञ्जय की यात्रा के लिये अनेक बार बड़े २ संघ लेकर आये । इन्होंने । शत्रुक्षय पर अनेक नवीनमन्दिर और धर्मस्थानों का निर्माण कराकर तीर्थ की शोभा में वृद्धि की। इन मंत्रीश्वर बन्धुयुगल ने नेमिनाथ जी और पारवनाथजी के भव्य मन्दिर तथा विशाल इन्द्रमण्डप बँधवाने की व्यवस्था की । मुख्य मन्दिर पर तीन स्वर्णकलश चढ़ाये । शाम्ब, प्रधुन्न, अम्बोवलोकन . ..
SR No.010499
Book TitleJain Gaurav Smrutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain, Basantilal Nalvaya
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1951
Total Pages775
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size44 MB
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