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जैन-कौरव-स्मृत्तियों
तात्पर्य यह है कि कला के क्षेत्र में. जैनधर्म का अपूर्व योगदान है। भारतीयकला के विकास में जैनकला का : असाधारण योग रहा है। भारतीयकला जैनकला की अाभारी है.। . . ..
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जैनकलाराधन के भव्य नमूना
प्रसिद्ध जैन तीर्थरस्थान :: (5 भायों को कलामय भव्यमन्दिरों और शान्त वैराग्य रसवर्षिणी प्रतिमाओं से अलङ्क त कर, तीर्थङ्करादि विशिष्ट महापुरुषों के जीवन-प्रसंगों को पत्थर पर अंकत कर तथा स्तूप, स्तम्भ एवं गुफाओं की रचना कर जैनों ने न केवल अपनी धार्मिक भावनाओं को मूर्त रूप ही दिया है अपितु भारतीय प्राचीन शिल्पस्थापत्य ललितकला और उसके रसोत्कर्ष को जीवन प्रदान भी किया है । जैनों के पवित्र तीर्थस्थानों की कलाकृतियाँ उनके धर्म प्रेम और कलाराधन की उज्ज्वलः प्रतीक हैं। अतः यहाँ कतिपय प्रसिद्ध तीर्थस्थानों की भव्य कलाकृतियों का दिग्दर्शन कराया जाता है। .:..:.:. काठियावाड़ प्रदेश ...
गिरिराजशञ्जय महातीर्थ:: तीर्थः शब्दःके पीछे कोटि. २ भारतीय आस्तिक आत्माओं की अदम्य धार्मिक भावना छिपी हुई है । धर्मपरायण भारतीय जनता के लिए तीर्थयात्रा जीवन की सफलता का एक अंग है। प्रत्येक भावनाशील व्यक्ति के हृदय में तीर्थयात्रा करने की साध और उमंग बनी रहती है और जब उसे यह पुनीत प्रसंग प्राप्त होता है तो वह अपने जीवन को सफल मानता है। ......
जिन स्थानों या प्रदेशों का महापुरुषों के जीवन प्रसंगों के साथ किसी तरह का सम्बन्ध होता है या जो स्थान विशिष्ट प्रभावोत्पादक, रमणीय एवं पवित्र वातावरण वाले होते हैं, वे तीर्थ कहे जाते हैं । तीर्थस्थान महापुरुषों के जीवनःप्रसंगों को सर्वदा जीवित रखने के कारण तथा भावना शील
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