________________
जैन गौरवस्मृतियां *
कला और स्थापत्य जीवित रूप में विद्यमान न होते तो विसंवादी मुस्लिम कला से हिंदुकला दूपित हो जाती । प्रभास पाटन के प्रसिद्ध सोमनाथ के शिवमंदिर के विषय में मि० फग्र्युसन ने अपने स्थापत्य विपयक ग्रंथ . में लिखा है कि-यद्यपि वह ब्राह्मण धर्म का मंदिर है तथापि वह बारहवीं
शताब्दी की गुजरात में प्रयुक्त जैन कला-शैली का उदाहरण है। राणकपुर के जैनमंदिर के अनेक स्तम्भों को देखकर वह कलारसिक विद्वान् मुग्ध हो जाता है । उसके प्रत्येक स्तम्भ में विविधता है। उसकी रचना में प्रसाद .. (.gr.ce ) है । अलग२ ऊंचाई वाले गुम्बजों का सुन्दर रीति से समूह .. किया गया है और ऐसा करते हुए प्रकाश लाने की बड़ी सफलता और बुद्धिमानी पूर्वक योजना की गई हैं। यह सब उत्तम प्रभाव पैदा करती है। आबू के मंदिर अति विस्मयोत्पादक है । विमल मंत्री के बंधाये हुए मंदिर का संगमरमर का गुम्बज उसकी अति मूल्यवान् कोराई की कला से अति रमणीय है। तेजपाल के मंदिर जितना भव्य और उसकी जोड़ी का दूसरा कोई. नमूना विश्व भर में नहीं है । स्थापत्य के इन सुन्दर जीते जागते नमूनों ने अर्थात जैनकला ने भारतीय कला पर ही नहीं परंतु विदेश से आये हुये मुसलमानों की कला पर भी प्रभाव डाला हैं । अहमदाबाद की मुस्लिम कलामय इमारतों पर से यह बात स्पष्ट प्रकट होती है।" . . . . . . . . .
... प्रसिद्ध चित्रकार और कलाकारोंके उक्त वक्तव्यों से जैनकला की महत्ता भलीभांति व्यक्त हो जाती है । अतः इस संबंध में विशेष कुछ लिखने की
आवश्यकता नहीं रह जाती हैं । स्थापत्य की तरह चित्रकला और संगीतकला में भी जैनों को अपना विशेष महत्त्व है । बारहवीं शताब्दी की हस्तलिखित .. प्रतियों में जो चित्र मिलते हैं उनसे स्पष्ट है कि जैन चित्रकला अति प्राचीन. है। अभी तक राजपूत चित्रकला प्राचीन समझी जाती रही है परंतु जैनग्रन्थों में बालेखित चित्रों के प्रकट होने पर अब यह सिद्ध हो गया है कि . जैनचित्रकला राजपूतचित्रकला से तीन शताब्दियाँ जितनी प्राचीन है। मुगलचित्रकला के अस्तित्व से बहुत पहले ही जैनचित्रकला का विकास हो । चुका था। उस समय की पोशाक, रीति-नीति आदि की जानकारी के लिए . जैनग्रन्थों में बालेखित चित्रों का बड़ा भारी महत्त्व है । एलोरा की जैन .. गुफायें जैनचित्रकला और मूर्तिकला का भव्य प्रमाण है। ... ..