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जैन-गौरव स्मृतियां SSC
पर धीरे २ कला उपासना के स्थान से गिरकर इन्द्रियविलास का साधन बनगई । उस समय प्रकृति की वक्रदृष्टि से मुसलमानी आक्रमणों ने उसकी स्थिति छिन्नभिन्न कर डाली । हिन्दुधर्म ने दारिद्रय और निर्बलता स्वीकार कर ली। सोमनाथ खण्डहर बन गया। उस समय देश की कलालक्ष्मी को पूज्य और पवित्र भाव से आश्रय देने वाले जैनराज कर्त्ता और जैन धनाढ्यों के नाम और कीर्ति को अमर रखकर कला ने अपनी सार्थकता सिद्ध की है। महम्मद की संहारलीला पूरी होते ही गिरनार, शत्रुजय और आबू के शिखरों पर शिल्पियों की टांकियाँ गूंजने लगी । सारे विश्व को आश्चर्य चकित कर देने वाली प्रकाश-किरणें चमक उठीं । देश के कुवेरों ने देश के चरणों में आत्मा के रस की तृप्ति अनुभव की । सुगंध, रूप, समृद्धि-सबका धर्म में उपयोग किया तथा कला निर्माण का सच्चा फल शांति और पवित्रता का अनुभव किया । अतः कला थोड़े से विलासी जीवों के आनंद का विषय न रह कर प्रत्येक धर्मपरायण मुमुक्ष के लिए सदा के लिए प्रफुल्लित और सुगंधित पुष्प बन गई । प्रत्येक धर्मसाधक ने इस कलासृष्टि में आकर एका प्रता, पवित्रता और आत्मसंतोष प्राप्त किया। धर्म दृष्टि से देवायतन श्रीमंतों के लिए द्रव्यार्पण की योग्य भूमि बने । इस कार्य में उनके द्रव्य का सदुपयोग होने से उनका परिवार विलास से वचा और उन्होंने कुलगौरव और त्याग की शिक्षा ली। इन धनिकों के उदार द्रव्य त्याग से देश के कारीगरों और शिल्पियों के परिवार फले-फूले । असंख्य शिल्पियों में से जो प्राकृतिक विशेषता वाले थे वे मूर्तियों के निर्माता हुए । स्थापत्य, मूर्ति, लता या पुतली प्रत्येक विधान के पीछे इनकी उच्च आध्यात्मिक जीवनदृष्टि का भान हुए विना नहीं रहता । आबू के शानदार मंदिर, गिरनार के उन्नत देवालय और शत्रुजय के विविध आकार वाले विमानों को देखने वाला दर्शक आज के युग की कृतियों के लिए शमिदां होता है । जैनकला ने जैनधर्म को जो कीर्ति और प्रसिद्धि प्रदान की उससे समस्त भारत गौरवान्वित है और यह प्रत्येक भारत वासी के लिए अमर उत्तराधिकार है।" ( हिंदी कला और जैनधर्म से-जैन साहित्य संशोधक ३, १, पृ० ७६ )
श्री मोहनलाल भगवानदास जौहरी ने लिखा है कि-"जैनों के ।' स्थापत्य ने ही गुजरात की शोभा बढ़ायी है । यह प्रसिद्ध बात है कि यदि जैन
kekok kokakkakeks (४५६ ): Karki kakakakakake