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________________ * जैन-गौरव-स्मृतियाँ है सकती है। खड़ी मूर्तियों के मुख पर प्रसन्नता. झलकती है और हाय शिथिल लगभग चेतन रहित सीधे लटकते हुए. होते हैं। नग्न या वस्त्रा. च्छादित प्रतिमाओं में विशेप अन्तर नहीं होता है। प्राचीन श्वेताम्बर मूर्तियों में प्रायः एक कटिवस्त्र दृष्टिगोचर होता है। आसीन प्रतिमाएँ. साधारण तौर पर ध्यानमुद्रा और वज्रासन में स्थित प्राप्त होती हैं। उनके दोनों हाथ गोद में शिथिल रूप से एक दूसरे पर रखे हुए होते हैं। हस्तमुद्रा .. के अतिरिक्त.शेप बातों में प्रायः वे बौद्ध मूर्तियों से मिलती मुलती होती है। २४ तीर्थङ्करों के प्रतिमाविधान में व्यक्तिभेद न होने से लक्षणान्तर से ही इन्हें पहचाना जाता है । आसन पर प्रायः तीर्थकर का लाक्षणिक चिह्न या वाहन चित्रित होता है। - जैनाश्रित कला का प्रधान गुण इसके अन्तर्गत उल्लास में या भावनालेखन में नहीं है। इसकी महत्ता-कला की सूक्ष्मता, उदार शुद्धि और एक प्रकार की बाह्य सादगी में रही हुई है। जैनकला वेग प्रधान नहीं,.. परन्तु शान्तिमय है। सौम्य का परिमल जैनमन्दिरों के प्रसिद्ध सुगन्धित द्रव्यों की तरह सर्वत्र महकउठता है । इनकी समृद्धि में भी त्याग की शान्तझलक दीप्त होती है। अहमदाबाद के हठीसिंह की वाडी के ई० स० . की १६ वीं सदी के मन्दिरों के मण्डपों में सुंदर नर्तकियों की पुतलियाँ . . देखकर मैंने वहाँ एकत्रित भावनाप्रधान जैनों को इस विलासमय चित्रालेखन का प्रयोजन पूछा तो एक नवयुवक ने उत्तर दिया कि बाहर के .. मण्डपों में ऋद्धि और सिद्धि की मूर्तियाँ चित्रित करने का अभिप्राय यह .. है कि त्यागी को ये सब वस्तुएँ सुलभ है परन्तु वे त्याज्य होने से बाहर ही. रहती हैं इसी उद्देश्य के अनुसार जैनस्थापत्य के अनुपम वेभव में भी . त्याग ही अनन्य शांति छिपी हुई है। (जैन सा. संशोधक, ३. १, ५८.से. रविशंकर रावल का अभिप्रायः-- ..: "भारतीय कला का अभ्यासी जैनधर्म की तनिक भी उपेक्षा नहीं कर सकता । उसकी दृष्टि में 'जैनधर्म' कला का महान् आश्रयदाता, उद्धारक . . और संरक्षक प्रतीत हुए बिना नहीं रह सकता है । वेदकाल से लेकर मध्यकाल नक देवी देवताओं की कलासृष्टि से हिन्दुधर्म उभर रहा था। समय बीतने )
SR No.010499
Book TitleJain Gaurav Smrutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain, Basantilal Nalvaya
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1951
Total Pages775
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size44 MB
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