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* जैन गौरव-स्मृतियाँ ki * HNAHANAN
HARA प.गोरिनो, एल-मिलो,जे. विन्सन, इटली में वालिनी, वेलोनी-फिलिपि, पावो. लिनी, पुले, सुआली, टॅसिटोरी जेकोस्लाविया में लेत्नी, पर्टोल्ड, रूजलेण्ड में मिरोनाव, नार्थ अमेरिका में ब्लूमफील्ड आदि ।
... हर्ट वॉरन, मैथ्यू मैक्के, विलयम हैनेरी टॉल्बोट, वाल्टरलाइफर श्रीमती इलीयन क्लीनस्मिथ आदि २ विदेशी महानुभावों ने जैनधर्म स्वीकार . किया है, और ये तत्सम्बन्धी साहित्य लेखन का कार्य करते रहते हैं। ... हर्मन जेकोबीः
.. विदेशी विद्वानों में जैनधर्म और साहित्य की सबसे अधिक सेवा यजाने वाले प्रो० हर्मन जकोबी हैं। इनकी वहुमूल्य सेवाओं को जैनसमाज कभी नहीं भूल सकता है । जेकोबी का जन्म जर्मनी के कालोन में १६-२-१८५०. में हुआ था । चर्लिन और वॉन के विद्यापीठों में १६६८ से ७२ तक में संस्कृतः
और तुलनात्मक भापाशास्त्र का अभ्यास किया । १८७२. में भारतीय ज्योतिपशास्त्र सम्बन्धी निबन्ध लिखकर डॉक्टर श्राफ फिलॉसफी कीपदवी - प्राप्त की। लंडन के ब्रिटिशम्युजियम में हस्तलिखित प्रतियों के संग्रह के ।
आधार से एक वर्ष अन्वेपण में व्यतीत किया । १८७४ में भारत आये और जैसलमेर के प्रख्यात जैनभण्डार के संशोधन-कार्य में डा० वुलहर को सहायता प्रदान की। इस समय जैनधर्म और साहित्य के सम्बन्ध में विशेष योग्यता प्राप्त की । १८७६ में चॉन में प्रोफेसर हुए। इन्होंने जैनधर्म को बौद्धधर्म से सर्वथा स्वतंत्र सिद्ध किया। इसके बाद 'विग्लिओथेका इंडिका' में हेमचंद्र कृत परिशिष्टपर्व प्रकट किया। 'दी सेक्रेड बुक्स ऑफ दी इस्ट' में वाल्युम . २२ में आचारांग और कल्पसूत्र के तथा बाल्युम १५ में उत्तराध्ययन और : सूत्रकृताङ्ग के अंग्रेजी अनुवाद प्रकट किये । इन जिल्दों की विद्वत्ता भरी. प्रस्तावनाओं में जैनधर्म के इतिहास आदि के प्रश्नों पर पर्याप्त प्रकाश डाला। जर्मन विद्यार्थियों के लिये प्राकृतमार्गोपदेशिका की रचना की। 'विक्लियोथेका इण्डिका' में सिद्धपिंकृत उपमितिभवप्रपञ्च कथा तथा हरिभद्रसूरी रचित 'प्राकृत समारइच्च कहा संशोधित कर प्रकट की। 'पडम चरियम' की श्रावृति । संशोधित कर जैनधर्म प्रसारक सभा द्वारा प्रकाशित कराई । सन् १९१३ में - पुनः भारत में भाये और जैनधर्म के.सन्बन्ध में कतिपय व्याख्यान दिये।