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ॐ जैन- गौरव-स्मृतियाँ
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प्रथम महायुद्ध छिड़ जाने से भारत और जर्मनी के राजनैतिक सम्बन्ध बिगड़ गये, तदपि इन विद्वान् ने अखण्ड साहित्य सेवा चालू रखी । 'पंचमी कहा ' और 'नेमिनाथ चरिय' संशोधित कर और टिप्पण सहित प्रकट किये । इन विद्वान् महोदय ने वैदिक और बौद्धधर्म के साथ तुलना करके जैनधर्म के (म्वन्ध में फैली हुई भ्रमणाओं को दूर किया और युरोप में जैनधर्म के गौरव को बढ़ाया, अतः जैनसमाज इनका आभारी है ।
प्रो० विन्टर नित्स ने भी जैनधर्म के सम्बन्ध में खूब अन्वेषण किया है । जैनदर्शन के कर्मवाद विपय पर निबन्ध लिखकर इन्होंने डॉक्टर ऑफ : फिलासफी की. पदवी प्राप्त की । जैनागमों और साहित्य पर आपने अच्छा प्रकाश डाला है । 'दी हिस्ट्री ऑफ दी इन्डियन लिट्रेचर' में 'जैनधर्म की भारतीय साहित्य को देन' इस विषय पर सुन्दर विवेचन किया है अन्य भी कई विदेशी विद्वानों ने जैनसाहित्य की सेवा की है ।
भारतीय साहित्यरक्षा में जैनभण्डारों का महत्त्व:
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के. : जैन समाज ने विपुल साहित्य-सृजन के द्वारा सरस्वती की भव्य . आराधना तो की ही है परन्तु साथ ही साथ भारतीय साहित्य की सुरक्षा लिए भी बड़े २ प्रयत्न कर भारती पूजा का दुहरा लाभ लिया है । भारतीय साहित्य की रक्षा में जैनसमाज का बहुत बड़ा योग रहा है । जैनमुनियों ने प्रधान रूप से साहित्य का सृजन किया है और जैन श्रावकों ने अगणित द्रव्यराशि से साहित्य को सुरक्षित रखा है। इस तरह साहित्य के लिए दोनोंसाधु और श्रावक का सहयोग लाभप्रद हुआ है । जैनसमाज के इन दोनों वर्गों ने इस प्रकार साहित्य की समाराधना की है।
जैनाचार्यों ने साहित्य-सृजन किग और श्रावकों ने उसे सुरक्षित और प्रचारित करने के लिए भण्डार स्थापित किये और लेखकों को प्रोत्साहित किया | भारत के मुख्य २ स्थानों में जहाँ भी जैनियों का समुदाय ठीक २ मात्रा में है वहाँ भण्डार अवश्य दृष्टिगोचर होता है । पाटन, सम्भात, : लीम्बड़ी जैसलमेर, गृहविद्री आदि स्थान तो भंडारों के कारण ही प्रसिद्ध हैं ।
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