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x जैन-गौरव-स्मृतियां*
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जे, क्लाट, जी. बुहलर, आर हॉनल, इ. विन्डशे आदि ने विविध प्रकार के जैन-ग्रन्थों के सम्बन्ध में संशोधन करना प्रारम्भ किया । एल. राइस, इ. हुल्च, एफ कीलहान, पिटर्समें, जे. फग्र्युसन, जे. बर्जेस आदि जैनसम्प्रदाय के हस्तलेख, शिलालेख, मन्दिर, स्मारक आदि के सम्बन्ध में अन्वेषण करने लगे। प्रारम्भ से ही इन संशोधकों ने साहित्य के उपयोग मात्र से संतुष्ट न हो कर जैनधर्म के ऐतिहासिक स्थान का निर्णय करने के प्रयत्न. किये। इस सम्बन्ध में प्रथम किये गये निर्णय केवल कल्पनाजनित और. भ्रान्त थे । बौद्धधर्म और जैनधर्म में पाई जाने वाली समानता के आधार पर ये विद्वान् भिन्न २ गलत निर्णयों पर पहुँचे। कोलब क आदि ने मान लिया कि बौद्ध धर्म का जन्म जैनधर्स से हुआ जब कि विल्सन, लासन, वेवर आदि ने समझलिया कि बौद्धधर्म में से जैन-धर्म निकला है । परन्तु १८७६ में जेकोबी महोदय ने सचोट प्रमाणों से सिद्ध कर दिया कि जैन
और बौद्ध ये एक दूसरे से स्वतंत्र धर्मसंघ हैं। महावीर और बुद्ध-दो समकालीन महापुरुष हुए हैं । जेकोबी महोदय का यह तथ्यपूर्ण अन्वेषणं अब प्रायः सर्वमान्य हो चुका है।
यूरोपीय संशोधकों का मुकाव पुरातत्त्व की ओर विशेष होने से जैन इतिहास के सम्बंध में पर्याप्त साहित्य प्रकट हुआ, परन्तु यूरोप में बहुत समय तक जैनधर्म के सिद्धान्तों का सच्चा ज्ञान प्रचारित नहीं हो सका था। ई० सं०. १६०६ में जेकोबी महोदय ने तत्वार्थाधिगम सूत्र का अनुवाद किया। इससे सर्वप्रथम युरोप में जैनधर्म के सिद्धान्तों का सच्चा ज्ञान करने का साधन सुलभ, हुआ। इसके पश्चात् जेकोबी महोदय के शिष्यों ने अपने गुरु का पदानुसरण किया और जैनसिद्धान्तों के संबंध में साहित्य प्रकट होने लगा। . . .
__ जैनसाहित्य के सम्बन्ध में श्रम करने वाले कतिपय. विदेशी विद्वानों की शुभ नामावली इस प्रकार है
जर्मनी में लॉयमाल के शिष्य हुइटमान, श्राउर, शुनिंग; जेकोबी के - शिष्य किर्फल और ग्लान नेप (H.V. Glasenash), हर्टल; और उनकी . शिष्या शार्लोटे, काउज; हुल्च, स्मीट, प्राग के जर्मन विद्यापीठ में विन्टर
नित्स, स्टाइन, स्वीडन में कॉपेन्टियर, हाँलेण्ड में फाँडेगान, इंगलेण्ड, में । पार्नेट, फ्लीट, स्मिथ, · श्रीमती स्टिवन्सन, टॉनी, टॉमस फ्राकुराइस में: