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________________ dee* जैन-गौरव-स्मृतियाँ Sg. 中一中分长发中分的prey 的 中分长长长e sp《中的的的的的的的的 भापा में विविध साहित्य की रचना कर अपने सरल और कठिन विचारों को सब जिज्ञासुओं तक पहुँचाने की चेष्टा करने वाला और सम्प्रदाय में रह. कर भी सम्प्रदाय के बंधनों की परवाह न कर जो उचित मालूम हो उसपर . निर्भयता पूर्वक लिखने वाला, केवल श्वेताम्बर-दिगम्बर समाज में ही नहीं .. बल्कि जेनेतर समाज में भी उनके जैसा कोई विशिष्ट विद्वान हमारे देखने । में अबतक नही आया ।. . . . . केवल हमारी दृष्टि से ही नहीं परन्तु प्रत्येक तटस्थ विद्वान् की दृष्टि में भी जैनसम्प्रदाय में उपाध्यायजी का स्थान, वैदिक सम्प्रदाय में शंकराचार्य के समान है ।".. इनका जन्म सं०. १६८० में हुआ । गुरु का नाम नयविजय था। ८ वर्ष की अवस्था में काशी व आगरा में रहकर उच्चकोटि का ज्ञान उपार्जन किया। इसके बाद की अपनी सारी अवस्था तक साहित्यस्सृजन में लगे रहे। इन्होंने प्राकृत, संरकृत और गुजराती भाषा में विपुल ग्रन्थ राशि की रचना . की । न्याय, योग, अध्यात्म, दर्शन, धर्म, नीति, खण्डन मण्डन, कथा-चरित्र, . मूल और टीका-प्रत्येक विषय पर अपनी प्रौढ लेखनी चलाई। काशी में रहते हुए इन्हें 'न्यायविशारद' की उपाधि दी गई थी। इनके ग्रन्थ इस प्रकार हैं। ... अध्यात्मः-अध्यात्ममत परीक्षा, अध्यात्मसार, अध्यात्मोपनिषद्, : आध्यात्मिकमतदलन ( स्वोपज्ञ टीका ) उपदेश रहस्य, ज्ञानसार, परमात्म पञ्चविंशतिका, परमज्योति पञ्चविंशतिका, वैराग्य कल्पलता, अध्यात्मोपदेशः . ज्ञानसार व चूर्णि। दार्शनिकः-अष्टसहस्री विवरण, अनेकान्त व्यवस्था ... ज्ञानविन्दु, जैनतर्कभापा. देवधर्म परीक्षा, द्वात्रिंशत द्वात्रिंशिका, धर्मपरीक्षा, नयप्रदीप, नयोपदेश, नयरहस्य, न्यायखण्ड खाद्य, न्यायालोक, भापा रहस्य वीरस्तव, शान्त्रवार्ता समुच्चय टीका, स्याद्वाद् कल्पलता, उत्पादव्ययध्रौव्यसिद्धि टीका, ज्ञानार्णव, अनेकान्तप्रवेश, आत्मख्याति, तत्त्वालोक विवरण, त्रिसूत्र्यालोक, द्रव्यालोकविवरण, न्यायविन्दु, प्रमाणरहस्य, मंगलवाद वादमाला, वादमहार्णव, विधिवाद, वेदान्तनिर्णय, सिद्धान्त तर्क परिष्कार, सिद्धान्तमंजरी टीका, स्याद्वाद मंजूपा, द्रव्यपर्याय युक्ति । आगमिकःअराधक विराधक चतुर्भङ्गी, गुरूतत्व विनिश्चय, धर्मसंग्रह टिप्पन, निशाभक्त प्रकरण, प्रतिमाशतक, मार्गपरिशुद्धि, यतिलक्षणसमुच्चय, सामाचारी . प्रकरण, कृपदृष्टान्त विशदीकरण, तत्वार्थ टीका और अस्पृशद गतिवाद । Kakkakakakak( ४३८ )Koksksksksksksksika
SR No.010499
Book TitleJain Gaurav Smrutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain, Basantilal Nalvaya
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1951
Total Pages775
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size44 MB
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