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: पूर्ववर्ती शताब्दियों में भी जैनमुनियों ने अपनी प्रतिसा से मुसलिम शासकों .. पर भी अपना अमिट प्रभाव डाला । अतः इस काल में भी उनकी साहित्याराधना का प्रवाह अमोघ रूप से प्रवाहित होता रहा । गुजराती साहित्य के विकास में जैनमुनियों का असाधारण योग रहा है यह सब गुजराती साहित्यवेत्ता स्वीकार करते हैं।
४ अाधुनिक काल.
यशोविजय युगः-- आनन्दघन:
इस युग में प्रसिद्ध योगिराज और अध्यात्मयोगी श्री आनन्दघन जी . हुए । इनकी मुख्य प्रवृत्ति अध्यात्म की ओर थी। पहले ये लाभानन्द नाम के श्वेताम्बर मुनि के रूप में थे बाद में अध्यात्मयोगी पुरुप अानन्दधन के नाम से विख्यात हुए । इन्होंने अपनी आध्यात्मिकता की झाँकी स्वनिर्मित चौवीसियों में प्रतिविम्बित की है । इनकी चौबीसियों में जो श्राध्यात्मिक भाव है. व अन्यत्र दुर्लभ है ।इनके अनेक पद 'श्रानन्दधन बहोत्तरी' में दिये गये हैं. . उनमें प्राध्यात्मिक रुपक, अन्तर्योति का आविर्भाव, प्रेरणामय भावना और भक्तिका. उल्लास व्याप्त होता हुआ दिखाई देता है । आनन्दवन जी जैनधर्म की भव्य विभूति हैं।
यशोविजय जी :
अठारहवीं शताब्दी में हरिभद्र और हेमचन्द्र की कोटि में गिने जा सकने वाले महा प्रतिभासम्पन्न विद्वान श्री यशोविजयी हए । प्रखर नैयायिक तार्किक शिरोमणि, महान शासन, प्रताशाला समन्वयकार, हम कोटि के साहित्यकार: प्राचार सम्पन्न प्रभावक मुनि और महान सुधारक थे। ये हेमचन्द्र द्वितीय कहे जा सकते हैं।
मनकी प्रतिभा सवतोमुखी थी। पं० सुग्यलालजी ने निवाकरन .. के ( यशोविजय जी के.) समान ममन्वयशगि बनेवाला. न तर . मन्थों का गम्भीर दोहन करने वाला, प्रत्येक विषय के नल तक पहुँच कर, समभाव पृक अपना स्पष्ट मन्नत्य प्रकट करने वाला मानाय श्रीरलाकि