SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 412
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ >> भारत जैन - गौरव स्मृतियाँ ड 48478776 खोधों की रचना की । गुजराती कवितासाहित्य और लोककथासाहित्य की समृद्धि हुई । सतरहवीं शताब्दी के मुख्य प्रभाषकपुरुप जगद्गुरु श्री. हीरविजयसूरि हुए जिन्होंने अकबर बादशाह पर गहरी छाप डाली। इनके विद्वान शिष्य भानुचन्द्र उपाध्याय तत् शिष्य सिद्धिचन्द्र उपाध्याय, आदि ने साहित्यरचना के द्वारा संस्कृतसाहित्य की समृद्धि की । श्री धर्मसागर उपाध्याय, विजयदेवसूरि, ब्रह्ममुनि, चन्द्रकीर्ति, हेमविजय, पद्मसागर, समयसुन्दर, गुणविनय, शांतिचंद्र गणि, भानुचंद्र उपाध्याय, सिद्धिचंद्र उपाध्याय रत्नचन्द्र, साधुसुन्दर, सहजकीर्ति गरिण, विनयविजय उपाध्याय, वादिचन्द्र सूरि भट्टारक शुभचन्द्र, हर्षकीर्ति आदि अनेक प्रन्थकर्त्ताओं ने इस शताब्दी के साहित्य श्री को समृद्ध बनाया । कवि वनारसीदास जी : इस शताब्दी में प्रसिद्ध जैन कथि बनारसीदास हुए । इन्होंने हिन्दी भाषा में अनेक ग्रन्थों का पद्यमय अनुवाद किया । इन्होंने समयसार नाटक नामक ग्रन्थ हिन्दी पद्यों में बनाया । यह ग्रन्थ बड़ा अपूर्व है इसका श्वेताम्बर और दिगम्बर परम्परा में खूब सन्मान है । यह वेदान्तियों को भी आनन्द देने वाला ग्रन्थरत्न है । इसके अतिरिक्त अध्यात्मबत्तीसी आदि ग्रन्थों की इन्होंने रचना की । इस शताब्दी में संस्कृत प्राकृत ग्रन्थों पर बालाववोध टब्बों की रचना भी हुई | धर्मसिंह मुनि ने २७ सूत्रों की गुजराती गद्य में बालावबोध टच्चों के रूप में टीका लिखी । गुजराती गद्यसाहित्य, काव्यसाहित्य, लोककथासाहित्य, उर्मिगीत, भावानुवाद, ऐतिहासिकं साहित्य, युद्धगीत, रूपक, संवाद, बारहमासा यदि साहित्य की सब धारात्रों का प्रवाह अस्खलित रूप से इस शताब्दी में प्रवाहित हुआ । इस समय भक्तिमार्ग का भी उदय और विकास हो चुका था। मुसलमान शासकों के समय में भी जैनविद्वानों की सरस्वती आराधना का क्रम यथावत् चलता रहा । इस सतरहवीं शताब्दी में और इसकी Kexexeike(४३६)
SR No.010499
Book TitleJain Gaurav Smrutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain, Basantilal Nalvaya
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1951
Total Pages775
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size44 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy