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* जैननगौरव-मृतियाँ है
मण्डन की तरह उनके काका देहड़ के पुत्र धन्यराज या धनद भी अच्छे प्रसिद्ध विद्वान् थे । उन्होंने भर्तहरिशतकत्रय की तरह श गारधनद, . नीतिधनद और वैराग्यवनद की रचना की।
सोलहवीं शताब्दी के प्रारम्भ में गुणरत्न ने पाष्टिशतक पर टीका, तपोरन ने उत्तराध्ययनलघुवृति, सोमदेव गणि ने कथा महोदधि और सिद्धान्तस्तव टीका, चरित्रवर्धन ने सिन्दरप्रकर टीका तथा रघुवंश की शिशुहितैषिणी टीका । सोमधर्म गणि, गुणाकर सूरी, उदयधर्म, सर्वसुन्दर सूरी, मेघराज, साधुसोम, ऋषिवर्धन, धर्मचन्द्र गणि, हेमहंस गणि, ज्ञानसागर, शुभशील, राजवल्लभ, भावचन्द्र सूरी आदि ग्रन्थकर्ता हुए। रत्नमण्डन गणि ने उपदेशतरंगिणी और प्रवन्धराज (भोजप्रबन्ध ) की रचना की। प्रतिष्ठासोम ने सोमसौभाग्य काव्य लिखा। . सं० १५१४ में वृहत्वरतरगच्छीय जिनसागरसूरी के शिष्य कमल.. संयम उपाध्याय ने उत्तराध्ययन सूत्र पर सर्वार्थसिद्धि नाम की वृत्ति रची। सं० १५४६ में कर्मस्तव विवरण तथा सिद्धान्त सारोद्धार पर सम्यक्त्वोल्लास . टिप्पन लिखा । उदयसागर ने उत्तराध्ययन दीपिका लिखी 1 हर्पकुल गणि ने सूत्रकृताङ्गदीपिका, धाक्यप्रकाश, और बन्धहेतदयविसंगी लिख । लक्ष्मीकल्लोल ने याचारांग अवणि और ज्ञातासूत्र लघुवृत्ति लिखी। .
हदयसौभाग्य ने हेमप्राकृत वृत्ति, दुदिका पर. व्युत्पत्ति दीपिका लिग्दी । श्रुतसागर--( १५५० के लगभग) तत्वार्थवृति श्रुतसागरी टीका, तत्त्वजय प्रकाशिका, पटनाभत टीका, श्रीदाचिन्तामगि मटीक, यशस्तिनका . चन्द्रिका, ब्रतकथा कोप, जिनमहम टीका. आदि अन्य स्तिग्य ।
ज्ञानभूषण भट्टारकने सिद्धान्तमार भाप्य, तत्वज्ञान तरंगिगिा, पाश्वास्तिकाय टीका, नामनिवारण काव्यपंजिका, परमार्थोपदेश दशलगी. यापन, भक्तामरोगापन और सरस्वतीपूजा अन्य लिन्य ।
शम शतादी में नागमों और अन्य अन्धों पर भाषा में बालायाधी (य) की बनना । पावन और उनकी शिवपरम्परा ने यालय