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* जैन-गौरव-स्मृतियां
- संस्कृत-प्राकृत तथा तथा अपभ्रंश में जिनप्रभसूरि ने अनेक ग्रन्थों का निर्माण किया । इन आचार्य ने दिल्ली में शाह महम्मद को प्रतिबोध दिया था।
कर फर:- सं. १३७२ में धंध के कुल में परम जैनचन्द्र वकर के पुन फेक ने वास्तुसार नामक ग्रन्थ रचा। ज्योतिष, पदार्थविज्ञान आदि पर आपके ग्रन्थ प्रसिद्ध है। मेस्तुग :
... नागेन्द्रगच्छ के चन्द्रप्रभसूरि के शिष्य मेरुतुङ्ग सूरि ने सं. १३६१ में वर्धमानपुर में प्रवन्धचिन्तामणि तथा विचारश्रोणी स्थविरावली लिखे। इसमें इतिहास की सामग्री भरी पड़ी है। पाश्चात्य विद्वानों ने इन ग्रन्थों को विश्वसनीय माना हैं | गुजरात के हतिहास के लिए तो यह एक आधारभूत मन्थ गिना जा सकता है।
. . इसी प्रकार सुधाकनश, सोमतिलक, राजशेखरसूरि, रत्नशेखर, जयशेखर सूरि, मेरुतुङ्ग आदि बड़े विद्वान् साहित्यकार हुए हैं जिनकी कृतियाँ क्रमशः संगीत, दर्शन, प्रबन्ध, कोप, चरित्र विषयक कई ग्रन्थ रचे हैं । स्थानाभाव से विशेष परिचय नहीं दे पा रहे हैं। ' . . .इस शताब्दी में देवसुन्दरसूरि महाप्रभाविक आचार्य हुए । इन्होंनेः अनेक ताडपत्रीय प्रतियों को कागज पर लिखवाया । इनके अनेक विद्वान् शिष्य हुए। . . . . . . . . . . . . .
मंडनमंत्री-श्रीमाल जातीय संघवी गौत्रीय श्री. मण्डन मंत्री मण्डपदुर्ग ( माण्डु ) के शासक के मंत्री थे। ये उच्चकोटि के विद्वान थे। व्याकरण, अलंकार, साहित्य, संगीत आदि में अत्यन्त परगामी विद्वान् थे । मण्डन में लक्ष्मी और सरस्वती का विचित्र सामञ्जस्य था । मण्डन मंत्री के रचे हुए ग्रन्थ इस प्रकार हैं:
' सारस्वतमण्डन (व्याकरण ग्रन्थ ) काव्यमण्डन, कविकल्पद्रम, चम्पृमण्डन, कादम्बरीमण्डन, चन्द्रविजय, अलंकारमण्डन, शृङ्गारमण्डन, संगीतमंडन और उपसर्गमण्डन ।