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* जैन-गौरवमतियां
त्यकारों को खूब प्रोत्साहन दिया । वस्तुपाल स्वयं विद्वान था। नरनारायणानन्द काव्य की स्वयं रचना की थी। उसने अपना विधामण्डल बना रखा था। इस महा साहित्यरसिक की विनाप्रियता के कारण उमकान में मादित्य की खूब समृद्धि हुई। अमरचन्द्रसूरि--- - संस्कृत साहित्य में इनका बहुत ऊँचा स्थान है । इनके ग्रन्थों की कीर्ति जैनसमाज में ही अपितु ब्राह्मण समाज में भी प्रख्यात है। 'इनके बाल भारत' और कवि कल्पलता नामक ग्रन्य ब्राह्मण समाज में विशेष प्रख्यात थे । ये महाकवि, राजा वीसलदेव के दरवार के सम्माननीय विद्वान थे। इनकी रचनाएँ कल्पलता सटीक, कविशिक्षावलि, काव्यकल्पलतापरिमल सटीक पद्मानन्दकाव्य ( जिनेन्द्र चरित्र ), कलाकलाप, बाल भारत, छन्दोग्नावलि, अलंकार प्रबोध, सूक्तावलि और स्यादिशब्दसमुघय । .... चालच द्रसरिः---- ___ इन्होंने वस्तुपाल की प्रशंसा में वसन्तविलास नामक महाकाव्य की रचना की। करुणाबजायुधं नाटक-उपदेश कंदली पर टीका तथा विवेकमंजरी पर टीका भी इनकी रचनाएं है । जयसिंहसूरि ने वन्तुपाल तेजपाल प्रशस्तिकाव्य,
और हम्मीरमदमर्दननाटक लिखा । उदयप्रभसूरि ने सुकृतकलोमिनी, धर्माभ्युदय महाकाव्य, नेमिनाथ चरित्र, आरम्भसिद्धी । ज्योतिपग्रन्य), पडशीति और कर्मस्तव पर टिप्पन, उपदेशमाला कर्णिका टीका आदि अन्य लिम्वे । नरचन्द्रसरि:
- इन्होंने वस्तुपाल के आग्रह से 'कयारन सागर' ग्रन्थ की रचना की। इनके ग्रंथ इस प्रकार है:-प्राकृतदीपिका प्रबोध. कवारत्नसागर, अनधरायव टिप्पन, न्यायकंदली ( श्रीधर ) टीका, ज्योतिः सार और चविंशति जिन स्तुति । इनके शिष्य नरेन्द्रप्रभ ने अलंकार महोदधि की रचना की। इनके गुग श्री देवप्रभसूरि ने पाण्डव चरित्र: मृगावी चरित्र और काफम्धति अंधों की रचना की । मागक्यचन्द्रसरि ने 'पार्थ नाथ चन्त्रि शांतिनाथ चरित्र श्रीर. 'काव्यप्रकाश संकेत लिन्त्र । पण्डित प्रासावर:---
इसी तेरहवीं शताब्दी में दिगन्दर मन्ददाय में पंडित श्राशावर नामक