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SherSe* जैन-गौरव-स्मृतियाँ *Series
रत्नप्रभसूरीः
ये प्रसिद्धवादी वादीदेवसूरि के शिष्य थे। इनकी सर्वोत्कृष्ट रचना 'स्याहादरत्नाकरावतारिका' है जो स्याद्वाद रत्नाकर में प्रवेश करने के लिए सहायक रूप में लिखी । इसमें इतनी सुन्दर भाषा में न्याय का शुष्क विषय प्रतिपादित किया गया है कि पढ़ते २ काव्य का आनन्द आता है : स्यादाद रत्नाकर की अपेक्षा 'अवतारिका का प्रचलन अधिक हुआ । इन्होंने प्राकृत भापा में नेमिनाथ चरित्र सं. १२३३ में लिखा। १२३८ में धर्मदास कृत। उपदेशमाला पर दोघट्टी वृत्ति लिखी। ..
महेश्वरसूरि ( वादीदेवसूरि के शिप्य ) ने पाक्षिकसप्तति पर सुखप्रबोधिनी टीका लिखी। सोमप्रभसूरि-ने 'कुमारपाल प्रतिबोध' नामक ग्रन्थ लिखा । हेमप्रभसूरि-ने 'प्रश्नोत्तर रत्नमाला' पर वत्ति लिखी । परमानन्दसूरि ( वादिदेवसूरि के प्रशिष्य ) ने खण्डनमण्डन टिप्पन लिखा । देवभद्र ने प्रमाणप्रकाश और श्रेयांसचरित्र लिखा । सिद्धसेन ( देवभद्र के शिष्य ) ने प्रवचन सारोद्धार (नेमिचन्द्र कृत) पर तत्वज्ञान-विकाशिनी टीका, सामाचारी पद्मप्रभ चरित्र और स्तुतियाँ लिखीं । महाकविआसड:- इस महाकवि को कविसभाशृंगार की उपाधि थी। इन्होंने कालिदास के मेघदूत पर टीका लिखी तथा उपदेश कंदली, विवेक मंजरी और कतिपय स्तोत्र लिख।
नेमिचन्द्र श्रेष्ठी:- इन्होंने 'सहिसय' नामक ग्रन्थ प्राकृत में रचा। 'उपदेश रसायन' और 'द्वादशकुलक' पर विवरण लिखे, नेमिचन्द्र-इन्होंने प्रवचन सारोद्धार की विषमपद व्याख्या टीका, 'शतक कर्मग्रन्थ' पर टिप्पनक और कर्मस्तव पर भी टिप्पनक लिखे ।
तिलकाचार्य- इन्होंने जीतकल्प वृत्ति, सम्यक्त्व प्रकरण की टीका । (पूर्ण की), आवश्यनियुक्ति, लघुवृत्ति, दशवैकालिक टीका, श्रावक प्रायश्चित्तसमाचारी, पौषध प्रायश्रित्तसमाचारी, वन्दनकप्रत्याख्यान लघुवृत्ति, श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र लघुवृत्ति, और पाक्षिक सूत्रावचूरि ग्रन्थ लिख है। वस्तुपाल:
वाणिक कुल-भूपण मन्त्रीवर वस्तुपाल-तेजपाल ने साहित्य और साहि