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Shree जैन-गौरव-स्मृतियाँ
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४ . योग-योगविंशिका टीका, योगदीपिका, योगदर्शन विवरण।
अन्यग्रन्थ-कर्मप्रकृति टीका, कर्मप्रकृति लघुवृति, तिङन्तान्वयोक्ति, अलंकार चूडामणि टीका, काव्यप्रकाश टीका छन्दश्चूडामणि शठप्रकरण ऐन्द्रस्तुति चतुर्विशतिका, स्तोत्रावलि, शंखेश्वर पार्श्वनाथ स्तोत्र, समीकापार्श्वनाथ स्तोत्र, आदि जिनस्तवन, विजयप्रभसूरि स्वाध्याय और गोडी, पार्श्वनाथ स्तोत्रादि।
उपर्युक्त विशाल ग्रन्थराशि को देखने से ही प्रतीत हो जाता है कि उपाध्याय यशोविजयजी कितने प्रोड विद्वान थे। ये अनुपम विद्वान, प्रखर न्यायवेत्ता, योगवेत्ता, अध्यात्मयोगी, समयज्ञ और महानुधारक थे । इनका स्वर्गवास १७४३ में हुअा। ये जैनसाहित्य के इतिहास में प्रथमकोटि के साहित्यकारों में रखे जाने योग्य साहित्यसेवी हुए हैं।
विनयविजय उपाध्यायतथा मेघविजय उपाध्याय- - - ये यशोविजयजी के समकालीन हैं । इन्होंने आगमिक, दार्शनिक व्याकरण, काव्य और स्तुति सम्बन्धी अनेक ग्रन्यों का निर्माण किया । श्री मेघविजय उपाध्याय व्याकरण, न्याय, साहित्य के अतिरित आध्यात्मिक और ज्योतिर्विद्या में भी प्रवीण थे इन्होंने महाकवि माय के माघकाव्य के प्रत्येक श्लोक का अंतिम पद लेकर शेष तीन पादों की विषयवद्ध रचना करके देवानन्दाभ्युदय महाकाव्य की रचना की । इसी तरह नपध के प्रतिश्लोक का एक चरण कर शांतिनाथ चरित्र काव्य की रचना की। सबसे अधिक चमत्कृति पूर्ण इनका सप्रसंधान महाकाव्य है । इसका प्रत्येक श्लोक ऋषभदेव, शांतिनाथ, नेमिनाथ, पार्श्वनाथ, महावीर, रामचन्द्र और माग इन सात महापुन्पों को समान रूप से लागू होता है। कितनी चमत्कार पूर्ण काव्य कृति । काव्य के अतिरिका चन्द्रप्रभा व्याकरता त्या चरित्र ज्योतिष के मेवमहोदय, रमता शास्त्र, तसंजीवन टीया साति, मंत्रतंत्र अध्यात्म और स्तोत्र श्रादि अनेक ग्रन्थों का निर्माण किया।
इनके बाद यशावन नागर, लवमानसन, यादि नंदमारिया लेखमा सीसवी शताब्दी में नयापन्द्र, महाविजयांग, घमारल्याण