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जैन-गौरव-स्मृतियाँ R
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न्यायशास्त्र को गुम्फित किया है इसी तरह आचार्य हेमचन्द्र ने भी सहावीर की स्तुति रुप में इनकी रचनाए की हैं । श्लोकों की रचना महाकवि कालिदास की शैली का स्मरण कराती हैं। अन्ययोगव्यच्छेदिका एर मल्लिपेण सूरी ने स्याद्वादमंजरी नामक प्राञ्जल टीका लिखी है।
नीतिग्रन्थ में अर्हन्नीति आपके द्वारा रचित कही जाती है परन्तु इसमें सन्देह है क्योंकि यह आपकी प्रतिभा के अनुरूप कृति नहीं है। "
इस प्रकार व्याकरण, काव्य, कोप, छन्द, धर्मशास्त्र, न्यायशास्त्र, आयुर्वेद, नोति आदि विषयों पर आपका पूर्ण अधिकार होने से तथा सर्वतोमुखी प्रतिभा के धनी होने से आपका नाम 'कलिकालसर्वज्ञ' बिल्कुल यथार्थ सिद्ध होता है।
आचार्य श्री ने साहित्य सेवा के अतिरिक्त भी जैनधर्म की महती. प्रभावना की हैं । कहा जाता है कि आपने डेढ लाख मनुष्यों को जैन धर्मानुयायी बनाया था । श्रीमद् राजचन्द्र ने लिखा है कि आचार्य श्री चाहते तो अपनी प्रतिभा के बल पर अलग सम्प्रदाय स्थापित कर सकते थे परन्तु यह उनकी उदारता और निस्पृहता थी कि उन्होंने जैनधर्म को ही दृढ़, स्थिायी और प्रभावशाली बनाने में ही अपनी समस्त प्रतिभा का सदुपयोग कया । अन्त में ८४ वर्ष की आयु में सं० १२२६ में गुजरात की ही नहीं समस्त भारत की यह आसाधारण विभूति अमर यश को छोड़कर दिवंगत हो गई।
जैनसंसार और संस्कृत-प्राकृत संसार में आचार्य हेमचन्द्र का नाम यावच्चन्द्र दिवाकरौ अमर रहेगा। आचार्य आनन्दशंकर धुव्र ने कहा है:
ई० सन् १०८६ तक के वर्ष कलिकालसर्वज्ञ हेमचन्द्र के तेज से दैदीप्यमान है।" जैनधर्म और भारतीयसाहित्य के इस महान् ज्योतिर्थर से भारतीय साहित्य का इतिहास सदा जगमगाता रहेगा। रामचन्द्र सूरी:-~ ....... श्री हेमचन्द्राचार्य के शिष्य थे । काव्य, न्याय और व्याकरण के पारगामी विद्वान् होने से थे 'विद्यवेदी' के विशेपण से विभपित थे।
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