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SiStree* जैन-गौरव-स्मृतियाँ e
* बताये गये हैं । यह कोप यह बताता है कि आयुर्वेद में भी आचार्य श्री की
अव्याहतगति थी।
छन्दशास्त्र-पर 'छन्दोऽनुशासनम अनुपम कृति है।
.. काव्यानुशासनमः-इसमें साहित्य के अंग, रूप, रस, अलंकार, गुण, दीप, रीत आदि का मर्मस्पर्शी विवेचन किया गया है । इस पर 'अलंकार चूडामणि' नामक स्वोपज्ञ वृत्ति है तथा अलंकार वृत्तिविवेक नाम दुसरी स्वोपज्ञ टीका भी है।
. योगशास्त्रः-इसका दूसरा नास आध्यात्मोपनिपढ़ है । इस पर बारह हजार श्लोक प्रमाण स्वोपन टीका है । इसमें आध्यात्मिक योग निरूपण के साथ २ आसन, प्राणायाम, पिण्डस्थ, पदस्थ आदि ध्यानों का निरूपण भी किया गया है । . .
कथाग्रन्थः-समुद्र के समान विस्तृत और गम्भीर 'विपष्टिशलाका पुरुप चरित्र' और 'परिशिष्टपर्व' आपकी महान कथा कृति है। इसका परिमाण चौतीस हजार श्लोक प्रमाण है । इसमें २४ तीर्थकर, १२ चक्रवर्ती,. ६ वलदेव, ६ वासुदेव, और प्रतिवासुदेवों के चरित्र वर्णित हैं। यह महाकाव्य कहा जा सकता है। परिशिष्ट पर्व में भगवान महावीर से लेकर युगप्रधान वनस्वामी तक का इतिहास उल्लिखित है। ऐतिहासिक सामग्री प्रदान करने वाला यह मुख्य ग्रन्थ है।
न्यायग्रन्थः-प्रमाणमीमांसा और दो 'अयोग व्यवच्छदिका' तथा 'अन्ययोग व्यवच्छेदिका रूप न्तुतियाँ आपकी दार्शनिक कृतियाँ है । श्राचार्य श्री ने अपने समय तक के विकसित प्रमाण शास्त्र की सारभृन बातें लेकर प्रमाणमीमांसा की सूत्रबद्ध रचना की है । इस पर स्वोपक्ष वृत्ति भी है। यह अन्य पांच अध्याय में विभक्त था परन्तु प्रथम अध्याय और सर अध्याय का प्रथम आन्हिक ही उपलब्ध है। न्याय-अन्धों में इस प्रन्ध का बड़ा महत्त्व है। अपनी रची हुई न्याय विधक दोहानिशिका कड़ा मुन्दर हैं । उदयनाचार्य ने कुसुमाञ्जलि में जिस प्रकार, ईश्वर की नुवि गप में