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* जैन-गौरव स्मृतियां
में भिन्न २ मान्यताएँ रखते हैं। दिगम्बर परम्परा के अनुसार चौदह । अंग बाह्य आंगम हैं। उनके नाम इस प्रकार हैं:--
(१) सामायिक (२) चतुर्विशंति स्तव (३) बन्दना ( ४ ) प्रति क्रमण (५) वैनयिक ( ६ ) कृतिकर्म (७) दशवकालिक (८) उत्तराध्ययन (६) कल्पव्यवहार (१०) कल्पाकल्पिक । ११) महाकल्पिक (१२) पुण्डरीक(१३) महापुण्डरीक और (१४) निशीथिका ।
दिगम्बर परम्परा के अनुसार वर्तमान में द्वादशाङ्ग और अंगबाह्य ग्रन्थ भी सब विच्छिन्न हो गये हैं । परन्तु श्वेताम्बर परम्परा ऐसा नहीं मानती । उसके मन्तव्य के अनुसार द्वादशाङ्ग और अंगबाह्य ग्रन्थों में परिवर्तन-परिवर्धन होते हुए भी वे प्रायः सुरक्षित हैं. और आज भी उपलब्ध हैं।
स्थानकवासी सम्प्रदाय निम्न २१ अंगबाह्य आगमों का प्रामाण्य स्वीकार करता है:- २ उपाङ्ग-१ औपपातिक, (२) राजप्रश्नीय (३)जीवाभिगम (४) ।
प्रज्ञापना (६) सूर्यप्रज्ञप्ति (७) चन्द्रप्रज्ञप्ति (५) जम्बू द्वीपप्रज्ञप्ति (८) निरयावली (६) कल्पावतंसिका (१०) ।
पुष्टिका (११) पुष्पचूलिका (१२) वृष्णिदशा । ४ छेद-व्यवहार, वृहत्कल्प, निशीथ और दशाश्रुतस्कन्ध ४ मूल-उत्तराध्ययन, दशवैकालिक, नन्दी और अतुयोग १ आवश्यक सूत्र।
इस प्रकार दृष्टिवाद ( जो कि विच्छिन्न हा चुका है ) के अतिरिक्त.. ग्यारह अंग और उक्त २१ अंगबाह्य सूत्र कुल बत्तीस आगम वर्तमान में सुरक्षित है; ऐसी स्थानकवासी और तेहरपन्ध सम्प्रदाय की मान्यता है।
श्वेताम्बरमूर्तिपूजक सम्प्रदाय की मान्यतानुसार अंगवाह्य आगम इस प्रकार हैं।