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* जैग-गौरव-स्मृतियाँsari
* १२ उपांग-औपपातिक आदि पूर्वोक्त १० प्रकीर्णक-( १ ) चतुःशरण ( २ ) आतुरप्रत्याख्यान
(३) भक्तपरिज्ञा (४) संस्तारक (५) तण्डुलवैचारिक (६) चन्द्रवेध्यक (७) देवेन्द्रस्तव ( ८ ) गणिविद्या
(8) महाप्रत्याख्यान और (१०) वीरस्तव । ६ छेदसूत्र-निशीथ (२) महानिशीथ (३) व्यवहार (४) दशाश्रत
स्कन्ध (५) वृहत्कल्प और (६) जीतकल्प । ४ मूलसूत्र-(१) उत्तराध्ययन (२) दशवैकालिक (३) आवश्यक
' और (४) पिण्डनियुक्ति । २ चूलिकासूत्र-(१) नन्दीसूत्र और (२) अनुयोगद्वार ।
उक्त प्रकार से ३४ अंगवाह्य आगम और दृष्टिवाद के अतिरिक्त ग्यारह अंग कुल पैतालीस आगम वत्तमान में उपलब्ध हैं यह श्वेताम्बर - परम्परा की मान्यता है।
अंगवाह्य आगमों के रचयिता
समस्त अंगग्रन्थ तो गणधर सुधर्मा प्रणीत हैं, इस विषय में कोई विवाद नहीं है । अंगवाह्य आगमों के प्रणेता के सम्बन्ध में थोड़ा सा मतभेद पाया जाता है। दोई २ उपाङ्ग आदि को भी गणधर प्रणीत मानते हैं जब कि किन्ही का मन्तव्य है कि गणधर तो द्वादशाङ्गी की ही रचना करते हैं। अन्य उपाङ्ग आदि भिन्न २ स्थविरों की रचना हैं । प्रज्ञापना उपाङ्ग के रचयिता आर्य श्याम हैं। उनका दूसरा नाम कालकाचार्य (निगोद व्याख्याता) हैं। इन्हें वीर निर्माण सं० ३३५ में युगप्रधान का पद मिला और वे उस पद पर वीर नि० ३७६ तक बने रहे । अतः इसी काल की रचना प्रज्ञापना है। शेष उपाङ्गों के कर्ता गणधर हैं या अन्य स्थविर हैं। यह विवादास्पद है । कोई २ इन्हें गणधरकृत मानते हैं और कोई २ स्थविरकृत ।।
नन्दीसूत्र की रचना देववाचक ( देवर्धिगणि ) की है। अनुयोग द्वार आयरक्षित के द्वारा (विक्रम की दूसरी शताब्दी में ) रचा गया है। दशवैकालिक के रचयिता शय्यम्भव है । इनके गृहस्थ अवस्था के पुत्र मनक की आयु अत्यल्प शेप (छै मास शेप ) जानकर उसे संक्षेप में धर्म का
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