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* जैन-गौरव-स्मृतियाँ
... श्रमणभगवान् महावीर के ग्यारह गणधर थे। इनमें से नौ तो
भगवान् की उपस्थिति में ही निर्वाण प्राप्त कर चुके थे प्रथम गणधर श्री इन्द्र, 'भूति गौतम और पञ्चम गणधर श्री सुधर्मास्वामी विद्यमान थे । वर्तमान तीर्थ श्री सुधर्मा से ही प्रवर्तित है,और वर्तमान द्वादशाङ्गी के सूत्ररूप के प्रणेता भी सुधर्मास्वामी हैं द्वादशाङ्गी के नाम इस प्रकार हैं।
(१)आचाराङ्ग (२) सूत्रकृताङ्ग (३.) स्थानाङ्ग (४) समवाया (५) व्याख्याप्रज्ञप्ति (६) ज्ञातृधर्मकथाङ्ग (७) उपासकदशाङ्ग (८). अन्तकृद् दशाङ्ग (६) अनुत्तरौषपातिक (१०) प्रश्न व्याकरण ( ११) . विपाक और (१२) दृष्टिवाद ।
बारहवें दृष्टिवाद के अन्दर १४ पूर्व भी समाविष्ट हैं । चौदह पूर्वो । के नाम इस प्रकार हैं:(१) उत्पादपूर्व-इसमें द्रव्य की उत्पत्ति, स्थिति और विनाश का विषय है । (२)अग्रायनीयपूर्व-इसमें मूलतत्व. द्रव्य आदि का विषय है। । (३) वीर्यप्रवादपूर्व-इसमें द्रव्य, महापुरुष और देवों की शक्ति का विषय है । (४) अन्तिनास्ति प्रवादपूर्व-इसमें वस्तु निर्णय के सात प्रकार, नय प्रमाण
आदि का विषय है । (५) ज्ञानप्रवादपूर्व-इसमें सत्यज्ञान और मिथ्या ज्ञान सम्बन्धी वर्णन हैं । (६) सत्यप्रवादपूर्व-इसमें सत्य और असत्य वचन सम्बन्धी विवेचन है। (७) आत्मप्रवादपूर्व-इसमें आत्मा सम्बन्धी वर्णन है। (८) कर्मप्रवादपूर्व-इसमें कर्मों की चर्चा है। (E) प्रत्यारव्यानप्रवादपूर्व-इसमें कर्मक्षय सम्बन्धी विवेचन है। .. (१०) विद्याप्रवादपूर्व-विद्या सिद्धी का वर्णन इस पूर्व में है। (११) कल्याणवाद पूर्व या अवन्ध्यपूर्व-इसमें ६३ उत्तम पुरुषों के जीवन
प्रसंग का उल्लेख है। (१२) प्राणवादपूर्व-इसमें औपधी सम्बन्धी उल्लेख है। . (१३) क्रियाविशालपूर्व-इसमें संगीत, वाद्य आदि कला और धर्मक्रियाओं
का वर्णन है।