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जैन - गौरव -स्मृतियाँ
सहयोग से बड़ा लाभ उठाया। यही नहीं, उस समय तो मुगल बादशाहों के बनाने बनाने - बिगाड़ने में भी भण्डारी जी का बड़ा हाथ रहता था। संवत् १७७६ में बादशाह फरुखशियर के मारे जाने पर दिल्ली की षडयंत्रकारी स्थिति को सम्भालने और शाहजादा मुम्मदशाह को तख्त पर बैठाने में आप ही का हाथ था । इस प्रकार राजनीतिक क्षेत्र में आपने कई उल्लेखनीय कार्य किये ।
रायभण्डारी रघुनाथ सिंह जी
महाराजा अजितसिंह जी के राज्यकाल में दीवान पद पर रहकर आपने कई वीरता भरे कार्य किये। महाराजा प्रायः दिल्ली रहते थे । उनके नाम पर कुछ समय तक रघुनाथ जी ने मारवाड़ का शासन किया | आपके सम्बन्ध में निम्न दोहा प्रसिद्ध है:
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करोडां द्रव्य लुटायो, हौदा ऊपर हाथ । जे दिली रो पातशा राजा तू रघुनाथ ॥
महाराजा अजितसिंह आप पर बड़े प्रसन्न थे। फारसी तवारीखों में भी आप की ख्याति का उल्लेख मिलता है। आपके बाद भण्डारी अनोपसिंह जी, रतनसिंह जी, पौम सिंह जी, सूरतराम जी आदि बड़े २ प्रसिद्ध दीवान और सेनापति हुए हैं। भण्डारी रतनसिंह जी सं १७६३ से ६७ तक मुगल सम्राट् की ओर से अजमेर और गुजरात के शासक ( Governor) रहे हैं ।
शमशेर बहादुर शाहमल जी लोढा :
आप जैन श्रोसवाललोढ़ा थे । महाराजा विजयसिंह जी ने सं० १८४० में आप को फौज का कमान्डर इन्चीफ ( मुसाहिब) बनाया । सं० १८४६ में आपने गोड़वाड़ के एक युद्ध में बड़ा जौहर दिखाया और महाराजा द्वारा. - शमशेरवहादुर की पदवी प्राप्त की । इनके समय से ही जोधपुर के लोढा 'परिवार को 'राव' की पदवी मिली। इसी परिवार में उदयकरण जी लोढा 1 भी प्रतापी वीर हुए है। आपके सेनापतित्व में अमरकोट की विजय हुई |