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* जैन-गौरव-स्मृतियां *
होते हैं। यही नहीं आपने एक पंचवर्षीय रिपोर्ट भी बनाई जिसमें मारवाड़ के शासन-से सम्बन्ध रखने वाली सूक्ष्म से सूक्ष्म बात का भी वर्णन है ।
संवत् १७२५ के आसपास महाराजा से आपकी अनबन हो गई। महाराजा ने इन पर एक लाख रुपयों का दण्ड किया। परन्तु स्वाभिमानी नैणसी ने देने से इन्कार कर दिया। इस पर ये और इनके भाई सुन्दरदास कैद में रखे गये । इन पर बड़ी सख्ती की गई। अन्त में १७२७ ( वि-सं ) भाद्रपद १३ को इन्होंने पेट में कटार मार कर स्वर्ग की राह ली। इस घटना से महाराजा को बड़ाभारी पश्चात्ताप हुआ। ..............
नैणसी चतुरशासक होने के साथ ही एक साहित्यिक भी थे। आपके द्वारा लिखी हुई “मुणोत नैणसी की ख्यात" भारतीय साहित्य, इतिहास
और पुरात्त्व के सम्बन्ध में एक बहुमूल्य ग्रन्थ है । इस ग्रन्थ में राजपूताना, मालवा, गुजरात, कच्छ, काठियावाड़ और मध्यप्रदेश के इतिहास से सम्बन्ध रखने वाली कई महत्वपूर्ण बातें संगृहीत हैं । डिंगल भाषा होने के कारण ग्रन्थ का समझना कठिन है। हाल ही में काशी नागरीप्रचारिणी सभा ने इस महान् ग्रन्थ को प्रकाशित किया है । इस प्रकाशन से नैणसी की प्रतिभा से साहित्यसंसार चकित हो उठा है। . . .. . .
आपके भाई सुन्दरदास जी बड़े वहादुर थे । नैणसी के पुत्र कर्मसी भी एक इतिहास-प्रसिद्ध व्यक्ति हुए। संवत १७१८ से १७२३ तक ये महाराजा जोधपुर की ओर से हाँसी, हिसार जिले के शासक रहे । आपके वाद इस मुणोत परिवार में संग्रामसिंह जी, भगवतसिंह जी, रावत जी ठाकुर सूरतराम जी, ठाकुर सवाईराम जी, दीवान ज्ञानमल जी आदि बड़े प्रख्यात हुए हैं। भण्डारी खींवसीजी:
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आप एक महान् कूटनीतिज्ञ हुए हैं। मुगल सम्राटों पर भी आपका बड़ा प्रभाव था । जब जब भी जोधपुर की हितरक्षा का सवाल आता था. तब २ आप बड़ी कुशलता से मुगल सम्राटों से अपने हक में फैसला करवा लेते थे । औरंगजेब के बाद मुगल साम्राज्य का पत्तन प्रारम्भ हुआ । इससे तत्कालीन जोधपुर नरेश अजितसिंह जी ने दीवान. भण्डारी खींवसी के