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________________ S e★ जैन-गौरव-स्मृतियाँ . . . . . . . . . सिघी भीवराजजी:--- सिंघी भीवराजजीः:- . जोधपुर के सेनानायकों (Commander in Chif) में सिंघी जेठमल जी और सिंघी भीवराज जी के नाम और काम उल्लेखनीय हैं । संवत् १८३४ में जब मरहठों की फौज जयपुर के ढूंढाण- आम्बेर इलाकों में लूट मचा रही थी तव भण्डारी भीवराज जी ने १५००० सेना को साथ लेकर मरहठों का मुकाबला किया और उन्हें बुरी तरह हरा दिया । तत्कालीन जयपुर नरेश ने जोधपुर नरेश को एक पत्र लिखा था- "भीवराज जी हों और हमारी आम्बेर रहे।" अर्थात् भीवराज जी की बदौलत ही आम्बेर की रक्षा हुई। सिंघी इन्द्रराजजीः जिस समय महाराजा मानसिंहजी ने जोधपुर का शासनभार सम्भाला, उस समय भारत में अराजकता फैली हुई थी। मुगल साम्राज्य अन्तिम साँस ले रहा था। मरहठे लूटमार में व्यस्त थे । राजस्थान के नरेशों में फूट पड़ी हुई थी। ऐसे विकट समय में सिंघी इन्द्रराजजी अवत्तीर्ण हुए। एक घरेलू मामले को लेकर जोधपुर व जयपुर नरेशों में बड़ी अनवन हो गई और जोधपुर नरेश मानसिंह जी ने सं १८६२ में जयपुर पर चढ़ाई करदी। अजमेर में दोनों ओर की सेनाएँ इकट्ठी हुई। जोधपुर के श्री इन्दराज जी और जयपुर के रतनलालजी ने आपसी. सुलह द्वारा इस व्यर्थ के नरसंहार को रोकने का प्रयत्न किया और अन्त में इन्दौर नरेश को वीच में रखकर दोनों में सुलह करवा दी। परन्तु कुछ दिनों के बाद ही यह सन्धि भंग हो गई। ध खे से जयपुर नरेश जगतसिंह जी ने मारवाड़ पर चढाई कर दी। गांगोली घाटी पर दोनों का मुकाबला हुआ। इसमें जयपुर वालों की जीत रही। मारोठ, मेड़ता, परवतसर, नागौर, पाली और सोजत पर जयपुर का अधिकार हो गया। किले के सिवाय जोधपुर पर भी जयपुर का अधिकार हो गया। . . . . . . . . .
SR No.010499
Book TitleJain Gaurav Smrutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain, Basantilal Nalvaya
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1951
Total Pages775
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size44 MB
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