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SSS जैन-गौरव-स्मृतियाँ
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युद्ध की तय्यारियाँ कर ली । मंत्रियों के परमार्थ से व्यर्थ संहार न हो अते. . दोनों भाइयों का ही युद्ध नियत हुआ दोनों अखाड़े में उतर पड़े । भरत बाहुबली को पराजित न कर सके अतः उन्होंने क्रोध में आकर बाहुबलि पर चक्र चलादिया लेकिन वह भी कामयाब न हुया । भरत को सहसा विवेक की सुध आई। दोनों भाई गले मिले । बाहुबलि इस घटना से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने राजपाट छोड़ दिया और अत्मसाधना के लिए वन में चले गये । इन्होंने आत्मविजय करके मोक्ष प्राप्त किया। इन वाहुबली की ध्यानमय दशा की ५७ फीट ऊँची भव्य मूर्ति श्रवणवेलगोला में अपूर्व छटा प्रदर्शित कर रही है। पुराने ग्रन्थों में और भी अनेक उल्लेख मिलते हैं जिनसे दक्षिण भारत में जैनधर्म का अति प्राचीनकाल से प्रचार था, यह प्रमाणित होता है । पौराणिक बातों को छोड़कर ऐतिहासिक युग. पर. ही अब . विचार करते हैं।
अब विद्वान लोग धीरे २ इस बात पर आ रहे हैं कि भारत में आर्यों के आगमन के पूर्व भी जैनसंस्कृति का प्रचार था । मौर्य सम्राट चन्द्रगुप्त के समय में उत्तरी भारत में संयकर दुष्काल पड़ा तब भद्रवाहु स्वामी का अपने विशाल श्रमणसंघ के साथ दक्षिण भारत की ओर प्रयाण करना भारतीय इतिहास की एक प्रामाणिक घटना है । इस पर से यह प्रतीत होता है कि उनसे पहले भी दक्षिण भारत में जैनधर्म का अच्छा प्रचार था। मैंनसंघ की इस . दक्षिण यात्रा से वहाँ जैनधर्म को और भी अधिक फूलने-फलने का अवसर मिला।
दक्षिणभारत के मुख्य २ राजवंशों ने जैनधर्म को अपनाया था। गंग, राष्ट्रकूट, कदम्ब, पाण्ड्य, चोल, चेर, पल्लव, चौलुक्य, होयसल, कलचूरी आदि राजवंश जैनधर्मावलम्बी या जैनधर्म के हितैपी रहे। : . . . .
" गंगवंश के राजाओं ने मैसूर में ईसा की दूसरी शताब्दी से ग्यारहवी. शताब्दी तक शासन किया । इस वंश की स्थापना जैनाचार्य श्री सिंहनन्दि
की सहायता से हुई थी। इससे इस वंश के सर्व राजा __ गंगवंशः-- जैनधर्मानुयायी ही हुए। इस वंश के प्रथम नरेश मांधव
कोंगणिवर्मा हुए। इनके समय में जैनधर्म ही राजधर्म था।
keksikokokk: (३४६) Kokeikekokake,