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जैन-गौरव-स्मृतियाँ
* इस वंश की स्थापना के सम्बन्ध में कहा जाता है कि-उज्जैन के राजमहीपाल
ने सूर्यवंशी राजा पद्मनाभ को युद्ध में हराया। पद्मनाभ के दो पुत्र ददिग और माधव दक्षिण में चले गये। पेरूर में इन्होंने जैनाचार्य सिहन्दि के दर्शन किये । आचार्य ने इन्हें अपनी शरण में ले लिया । आचार्य की कृपा से ये राज्याधिकारी वन गये। आठवीं शताब्दी में यह राजवंश उन्नति के शिखर पर पहुँच गया।
इस वंश के प्रथम नरेश माधव के वाद ददिग का पुत्र किरियमाधव गादी पर बैठा और इसके बाद अनेक राजाओं ने राज्य किया । ये सब जैनधर्मानुयायी नरेश थे । इनमें मारसिंह राजा बहुत प्रसिद्ध और पराक्रमी हुआ । इसने राठौड़राजा कृष्णराज तृतीय के लिए उत्तर भारत के प्रदेश को जीता था इसलिए यह गूर्जररोज भी कहलाता था । किरातों, मथुरा के राजाओं, वनवासी के अधिकारी आदि को रणक्षेत्र में परास्त किया था। नीलाम्बर के राजाओं को नष्ट करने के कारण यह 'बोलम्बकुलान्तक' कहलाता था । रणवीर होने के साथ ही यह धर्मवीर भी था । इसने कई स्थानों पर मन्दिर बनवाये थे।
. उक्त मारसिंह और रायमल्ल चतुर्थ के मंत्री और सेनापति समरधुरन्ध वीरमार्तण्ड, परमप्रतापी चामुण्डराय थे। इन्होंने जैनधर्म का खूब प्रभाव
... वढ़ाया । रणकौशल और राजनीति नैपुण्य के कारण ये चामुण्डराय मंत्री और सेनापति दोनों का कार्यभार सम्भालते थे।
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ये सिद्धान्तचक्रवर्ती श्री नेमिचन्द्राचार्य और श्री अजितसेन स्वामी के शिष्य थे। ये शास्त्रारसिक थे। इन्होंने. स्वयं ग्रन्थ की रचना की है। रण-व्यस्तता और राजनीति का दायित्व होते हुए भी ग्रन्थरचना के लिए समय निकालना सचमुच विलक्षण सद्गुण हे । इनका सबसे श्रेष्टतम यह कार्य जो इनकी कीर्तिगाथा को संसार में अमर बनाये हुए हैं-वह है श्रमणबेलगोला के विन्ध्यागिरि पर श्री गोमटेश्वर की विशाल मृत्ति की स्थापना। मृत्ति संसार की सर्वोत्कृष्ट मूर्ति मानी जाती है। इसकी ऊँचाई ५७ फीट की है। एक ही पत्थर से निर्मित इतनी विशाल और सुन्दर मृत्ति संसार में और कहीं नहीं है। ( विशेप वर्णन कला और कलाधाम प्रकरण में किया जावेगा)
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NAVRA -MATA
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