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________________ * जैन-गोरव-स्मृतियाँ ह ट वंश का तापी राजा हुआ है। इसका राज्यकाल विक्रम सं० ११५० से ११६६ तक है । इसके राज्यकाल में गुजरात का वैभव अपनी सिद्धराज जयसिंह सर्वोच्च चोटी पर पहुँचा था । उसने अपने पराक्रम के कारण वर्वरक को जीतकर सिद्धराज की उपाधि प्राप्त की थी। उसने मालवा पर आक्रमण किया। बारह वर्षे तक लड़ाई चलती रही। अन्ततः मालवा गुजरात के अन्तर्गत हुआ । इसी तरह मेवाड़ के प्रसिद्ध चित्तौड़- गढ़ का किला तथा आसपास का प्रदेश, बांगड़ देश (बांसवाडाडूगरपुर ) सोरठ, महोवा तथा अजमेर आदि प्रदेशों पर भी विजय प्राप्त की थी। सिद्धराज बहुत लोकप्रिय, न्यायी, विद्यारसिक और जैनों का अत्यन्त सन्मान करनेवाला राजा था। कलिकालसर्वज्ञ के रूप में प्रसिद्ध हेमचन्द्राचार्य का यह प्रच्छन्न शिष्य था ऐसा कहें तो भी कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। वैसे यह राजा प्रकट रूपसे अन्ततक शैव धर्मावलम्बी रहा परन्तु जैनाचार्यों के प्रति इसका बहुत ही अधिक सन्मान था। मलधारी . अभयदेवसूरि के उपदेश से सिद्धराज ने अपने समस्त राज्य में पर्यपण तथा एकादशी आदि दिनों में अमारि-घोप करवाया था । मलधारी अभयदेव ने अपने अन्तिम समय में ४७ दिन का अनशन किया तब सिद्धराज कई बार उनके दर्शन के लिए जाता था। वह धर्मकथा सुनने और उनसे वार्तालाप करने मुनि के उपाश्रय में आया करता था । श्री चन्द्रसूरि ने अपनी मनि सन्त्रत चरित्र-प्रशस्ति में यह भी लिखा है कि सिद्धराज ने अभयवर के शिष्य हेमचन्द्रसूरि (हेमचन्द्राचार्य से भिन्न ) के कहने से सारे राज्य के जैनमन्दिरों पर कनकमय कलश चढ़ाये तथा धंधुका, साचोर आदि स्थानों में अन्यतीर्थियों की तरफ से जिनशासन को होने वाली बाधायों का निवारण करवाया। सिद्धराज ने जैनाचार्यों के प्रभाव से प्रभावित होकर कतिपय भव्य मन्दिरों का निर्माण कराया । सिद्धपुर (मं० १९५२ में ) बसाने के बाद वहाँ उसने सुविधिनाथ तीर्थदर का -मंदिर तथा किसी के मत से महावीर जिनमन्दिर बनवाया । वहाँ चार जिनप्रतिमायुक्त. मिपुरविहार और पाटन में राजविहार कराया।
SR No.010499
Book TitleJain Gaurav Smrutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain, Basantilal Nalvaya
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1951
Total Pages775
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size44 MB
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