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Se जैन गौरव-स्मृतियाँ
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जैनधर्म को प्रधानरूप से अपनानेवाले और प्रधानता देनेवाले... पुर्जरनरेश तो चौलुक्य ( सोलंकी) वंशी हुए । इस वंश की स्थापना
करनेवाला राजा मूलराज (६६१-६६६) मूलतः शैव लंकी वंश के राजा धर्मानुयायी था परन्तु उसने भी जैनमंदिर बनवाया था।
. मूलराज के पुत्र चामुण्डराज ने श्री वीग्गणि नाम के साध के आचार्यपद महोत्सव अतिआडम्बर और धूमधाम से किया था। इस वंश में भीमदेव, कर्ण, सिद्धराज, जयसिंह, कुमारपाल आदि राजा हुए । सद्धराज, जयसिह और कुमारपाल के समय में गुजरात उन्नति के सर्वोच्च शखर पर आरुढ हुआ।
भीमदेव प्रथम ( १०२२-१०६४ ) का विश्वासपात्र दण्डनायक चेमल मंत्री था । विमल मंत्री के पूर्वज महामात्य नीनु, तत्पुत्र लहिर,
तत्पुत्र वीर थे । वीर के दो पुत्र महामात्य नेढ और विमल मंत्री:- विमल | सोलंकीवंश के राजाओं के ये बहुधा महामात्य
होते आये हैं । विमलमंत्री श्रीमाल कुल के पोरवाड़ . . -प्राग्वाट ) जाति के जैन वाणिक थे। यह बड़े वीर योद्धा थे । उस पसय आव का राज्य धंधुक ( धंधुराज ) करता था। वह भीमदेव का सामन्त था। भीमदेव और धंधुक के बीच वैमनस्य होने से वह परमार राजा भोज के वहाँ चला गया । अतः भीमदेव ने विमल को आबू का . दण्डाधिपति बनाया। वीमलसंत्री ने विक्रम संवत् १०८ (ई०सं० १०३२). में आबू पर एक भव्य मन्दिर का निर्माण कराया । यह 'विमल वसही' के नाम से अपनी अद्भुत शिल्पकला के लिए विश्वविख्यात है । सूक्ष्म . पच्चीकारी की दृष्टि से संसार भर में इसके समान और कोई कृति नहीं है। यह अपनी कारीगरी के कारण विश्वभर के कलाप्रेमियों को अपनी ओर आकष्ट कर रहा है। इसकी प्रशंसा करते हुए जेम्स टॉड ने लिखा है कि इससे बढ़कर भारत भर में कोई मन्दिर नहीं है । ताजमहल के सिवाय ... कोई भी इसकी बराबरी नहीं कर सकता है।" इस भव्यकृति के कारण विमलमंत्री सदा अमर रहेंगे।
सिद्धराज' की उपाधि धारण करनेवाला महाराजा जयसिंह चौलुक्य.