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जैन-गौरवं स्मृतियां *SS
गुप्तराजाओं के बाद गुजरात में वल्लभीवंश के क्षत्रिय राजा हुए । इस ___ वंश में कई वीरनरेश जैनधर्मानुयायी हुए। पांचवीं शताब्दी में राजा शिला
दित्य ने जैनधर्म ग्रहण किया था : इनकी राजधानी का नाम वल्लभी था।
वीर निर्वाण संवत् ६८०-६६३ तदनुसार ईस्वी सन् ५१८-५२३ में देवर्द्विक्षमाश्रमण के नेतृत्व में वल्लभीपुर में श्वेताम्बर साधुओं का संघ एकत्रित हुआ और वारह वर्षीय दुष्काल के कारण अस्त-व्यस्त बने हुए आगमों को व्यवस्थित किया । अब तक आगमों की मौखिक परम्परा चली आती थी परन्तु क्रमशः स्मृति-मान्य आदि का विचार कर संघ ने आगमों को लिपिबद्ध किये । इस प्रकार गुजरात की भूमि में ही पवित्र जैनागम पुस्तकारूढ़ हुए। इससे यह प्रमाणित होता है कि उस काल में भी गुजरात की भूमि में जैनों का अत्यधिक प्रभाव था। .
गुजरात. में विविध वंश के राजा जैनधर्म के छत्रधर हो गये हैं। चावड़ा वंश के महापराक्रमी राजा वनराज (७२०-७८० ई० सन ) जैन
धर्मानुयायी थे। बाल्यावस्था में जैनसाधु शीलगुणसूरी वनराज चावड़ा ने इसे आश्रय देकर पालन-पोषण करवाया था। इन मरी के
प्रभाव से वनराज जैन बना था। जब वनराज ने वि० सं० ८०२ में अणहिल्लपुर वाटण बसाया तव जैन मंत्रों से विधिविधान किया गया। इसके पहले पंचासर में उसकी राजधानी थी। यहीं शील गुणसूरि में (चैत्यवासी) वनराज का अभिषेक किया था। वनराज ने पंचासर में पार्श्वनाथ का मंदिर बनवया । वनराज ने अपने प्रधान मंत्री का पद चांपा नाम के जैनवणिक को दिया था और उसने पावागढ़ के पास चांपानेर नगर बसाया। वनराज के राजतिलक करने वाली श्री देवी भी जैनथी । वनराजने श्रीमालर से नीना सेठ को पाटण में लाकर उसके पुत्र लहिर नामक श्रावक को दण्डनायक ( सेनापति ) बनया था। उसके दूसरे मंत्री जांच भी श्रीमाली जैन थे। दण्डनायक लहिर बनराज के बाद होने वाले तीन राजाओं के समय तक दण्डनायक रहा । इसका पुन (परम्परा में: ? ) वीर हा जिसका पुत्र विमल मंत्री हुश्रा जिसने आत्रु पर विमल वसही का निर्माता करवाया। चावड़ा वंशी राजाओं ने जैनधर्म को विकासित किया . .
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