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* जैन-गौरव-स्मृतियाँ ★
- जैनअहिंसा के उपासक होते हुए भी उन्होंने अपने राजकीय कर्तव्य का दायित्वं बराबर निभाया । बाबू कामताप्रसाद जी ने लिखा है कि "एकयार गान्धार देश के राजा सात्यकि ने दूत भेजकर उन्हें (श्रेणिक को) कहलाया कि भारत पर इससमय महासंकट के बादल उमड़ पड़े हैं। ईरानियों ने हम पर धावा कर दिया है-हमारे अकेले के बूते का काम नहीं है कि उनको मार भगाएँ और स्वदेश की रक्षा करें। आइए, आप हमारा हाथ हाटइये।" महाराजा श्रेणिक यह संदेश पाकर एकदम तय्यार हो गये और उन्होंने ईरान के बादशाह को हराकर भगा दिया और उसके देश में भारतीयता की धाक जमा दी'।इस.प्रकार महाराजा श्रोणिक ने भारत को विदेशियों के जुएतले आने से बचा लिया । भारत को विदेशी आक्रमणों से बचाने में महाराजा श्रेणिक की सच्ची महत्ता रही हुई है । श्रेणिक के पुत्र अभयकुमार के प्रयत्न से पारस्य में जनधर्म का प्रचार हो गया। इस प्रकार महाराजा श्रेणिक मगध के प्रथम जैनसम्राट् हुए। इनके शासनकाल में जैनधर्म का बहुत व्यापक प्रभाव फैला.! :: :: . ... ... . .. ..
....: श्रेणिक के बाद उनका पुत्र कोणिक मगध का सम्राट्वना । इसने मगध का साम्राज्य और भी अधिक विस्तृत किया। इसने तत्कालीन वैशाली के
वज्जियन गणराज्य को हराकर अपने साम्राज्य में मिला अजातशत्रु-कोरिएक लिया था। इसका वर्णन 'गणराज के प्रमुख महाराजा
चेटक' के प्रकरण में कर चुके हैं। कोणिक को 'अजात शत्रु' कहा जाता है। इसकी. शरवीरता की चारों ओर खूब ख्याति फैली हुई थी। बड़े बड़े योद्धा भी इससे थर-थर कांपते थे। यह कोणिक अपने जीवन के आरम्भ काल में वड़ करकर्मा था। इसने अपने पिता श्रेणिक को बन्दी बना कर कैदखाने में डाल दिया था। परन्तु बाद में इसे बहुत पश्चाताप हुआ और वह स्वयं कुठार लेकर अपने पिता के बन्धनो को तोड़ने के लिए गया। दुर्भाग्यवश श्रोणिक ने समझा की यह मेरा वध करने के लिये आ रहा है अतः पुत्र को पितृहत्या के कलंक से बचाने के लिये उसने आत्महत्या करली । कोणिक को इससे भयंकर पश्चात्ताप हुआ और उसने पितृवध के पापको धोने के लिये प्रयत्न भी किये । -....... ... ... ... ... Rekekeletoketake: (३१५) kekeletekekoteke