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* जैन गौरव स्मृतियाँ
1. अपने उत्तर जीवन में भगवान महावीर के प्रति इसकी गहरी । भक्ति हो गई थी। औपपाति सूत्र से उसकी भक्ति का परिचय मिलता है। प्रतिदिन भगवान महावीर के कुशल समाचार जानकर फिर अन्न-जल ग्रहण " करने का उसका उग्र नियम था। यह नियम ही उसकी भगवान महावीर के प्रति अगाधभक्ति का परिचय देने के लिये प्राप्त है । अजातशत्रु कोणिक ने अपने शासन काल में जैनधर्म का प्रचार करने का यथाशक्ति प्रयत्न किया था। भगवान महावीर का निर्वाण इसी के शासनकाल में हुआ था।
' 'अजातशत्र के बाद शिशुनाग वंश में ऐसे पराक्रमी राजा न रहे जो . मगध राज्य को अपने अधिकार में सुरक्षित रखते । अतः नन्दवंश के राजा
ने मगध पर अपना अधिकार कर लिया। इसवंश के नंदवंश और अधिकांश राजा जैन-धर्मानुयायी थे, ऐसा विद्वानों का ____ जैनधर्म अनुमान है। किन्तु सम्राट् नन्दिवर्धन के विषय में यह
... निश्चित है कि वह जैन राजाथे नन्दिवर्धन महापराक्रमी राजा थे। इन्होंने कई लड़ाइयाँ लड़कर अपने साम्राज्य का विस्तार किया था। मगध पर (४४६-४०६ ई० पू०) ४० वर्ष तक उन्होंने राज्य किया। इस अवधि में उन्होंने अवन्तिराज को परास्त किया, दक्षिणपूर्व व पश्चिमीय समुद्रतटवर्ती: देश जीते, उत्तर में हिमालय वर्ती प्रदेशों पर विजय प्राप्त की .. और काश्मीर.को अधिकार में लिया । कलिङ्ग पर भी उसने धावा किया और उसमें भी सफल हुआ। इस विजय के उपलक्ष में वह कलिंग से श्री ऋषभदेव की मूर्ति पाटलिपुत्र ले आया था ! ... ....... . . .. महाराजा श्रोणिक ने ईरानियों को भारत में आने से रोक दिया था। परन्तु बाद में मौका पाकर उन्होंने तक्षशिला के पास अपना पाँव जमा लिया . ' था। परन्तु नन्दिवर्धन से.ई. पू.४२५ में ईरानियों को भारत की सीमा से । बाहर निकाल दिया था। इस प्रकार सम्राट नन्दिवर्धन से भारत में जमने वाले विदेशी राज्य का अन्त करके भारत के गौरव की रक्षा की। इस दष्टि से सम्राद श्रोणिक और नन्दिवर्धन का नाम भारतीय इतिहास में सदा अमर ।
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... अली हिस्ट्री श्राफ हरिश्या प० ४५.४६ .