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* जैन-गौरव स्मृतियाँ *>desise
आधा राज्य हमें देना स्वीकार करो तो हम हार और हाथी दें सकते हैं। कोणिक ने उनकी बात पर ध्यान न देकर अपनी माँग को ही पुनः पुनः दोह-, राया । दोनों भाइयों ने स्वतंत्र रहने में खतरा समझ कर अपने नाना राजा चेटक का आश्रय ले लिया और वे वैशाली में ही रहने लगे।.. ....
राजा कोणिक ने राजा चेटक के पास दृत भेजकर कहलाया कि हार, हाथी और हल्ल-वेहल्ल को हमें सौंप दो। राजा चेटक ने अपने गणराज्य । के नौ मल्ली और नौ लिच्छवि राजाओं ने परामर्श किया । उन सबने मिलकर यह निर्णय किया कि कोणिक अन्याय कर रहा है; हल्ल-वेहल्ल का पक्ष न्याययुक्त है और उन्होंने हमारा आश्रय लिया है अतः उनकी सुरक्षा करना हमारा कर्तव्य है । गणराज्यों से परामर्श करने के पश्चात् चेटक ने कोणिक को कहलाया कि-"राजाश्रेणिक और मेरी पुत्री चेल्लना के पुत्र होने से तुम भी मेरे दोहित्र हो और हल्ल-बेहल्ल भी राजा श्रेणिक और चेल्लना के पुत्र होने से मेरे दोहित्र हैं। इसलिए मेरेलिए तीनों समान हैं। राजा श्रेणिक ने अपने जीवन काल में हल्ल-वेहल्ल को हार और हाथी दिये थे इसलिए यदि तुम आधा राज्य उन्हें देना स्वीकार करो तो हार हाथी और हल्ल-वेहल्ल को तुम्हें लौटा दूंगा।" ...
. .. कोणिक ने इसे न मानकर युद्ध की घोषणा की और वैशाली पर आक्रमण कर दिया । वैशाली के गणराज्य ने न्याय की रक्षा के लिए कोणिक की चुनौती स्वीकार करली और नौ मल्ली नौ लिच्छवि राजाओं ने मगध के विशाल सैन्य के मुकाबले में अपनी सेनाएँ रण मैदान में उतार दी । अन्याय का प्रतिरोध करना गणराज्य का ध्येय था, तो भला वे कोणिक के द्वारा किये जाने वाले अन्याय को कैसे सहन कर सकते थे। दोनों ओर की सेनाएँ रणमैदान में उतर पड़ी । भयंकर युद्ध हुआ । लम्बे समय तक यह विनाशकारी संग्राम पलता रहा । इसमें भयंकर नरसंहार हुआ। इसमें अन्ततोगत्वा कोणिक की जीत हुई।.वैशाली का पतन हो गया। परिगाम कुछ भी क्यों न आया हो, भारत के इस प्रसिद्ध गणराज्य ने अन्याय के प्रतिरोध में कोई कसर न रक्खी । वैशाली के पतन के साथ ही इस सुप्रसिद्ध वज्जियन संघ का श्री अन्त हो गया ।
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